शिल्पी हो अपनी जिंदगी के
बांस का हर टुकड़ा बांसुरी बनने के लायक भले ही ना हो पर उसमे बांसुरी बनने की संभावना ज़रूर होती है। ऐसे ही हर वृक्ष कल्पतरु नहीं पर हर वृक्ष में कल्पतरु होने की पूरी संभावना रहती है। हर मनुष्य अच्छा नहीं होता पर हम सभी में अच्छा होने की संभावना हमेशा रहती है।
जो बन गया उसने तो पा लिया। पर जो ना बन सका क्या उसने खो दिया? नहीं। मिलता उसे भी है। जो पत्थर प्रभु की प्रतिमा नहीं बन पाया वह उसी मंदिर की सीढ़ियां बन गया। हम मंदिर जाते समय इन सीढ़ियों को भी तो प्रणाम करते हैं।
कहते हैं जो हम सोंच लेते हैं उसे कर पाने की पूरी संभावना होती है। ऐसा तब हो पता है जब हम उस सोंच को संकल्प में बदल देते हैं। अब जब लक्ष्य तय होगया तो फिर अर्जुन वाली क्षमता लानी है। तब निशाना अचूक होगा - इसमें कोई दोराय नहीं। अब क्यूंकि वह चीज़ आसान नहीं है वरना यूं ही नहीं मिल जाती, इसलिए राहों में भटकाव भी आसान नहीं मिलेंगे। भटकावों में भी कई वैरायटी आती है। जिनमे मुख्य है इंसानों और हालातों की। बाकी मोबाइल, पार्टी ये सब उन दो के आगे अब छोटे लगते हैं।
या तो हम भटकाव को खुद पर हावी होने देंगे या हम खुद को बचा कर साइड से निकल जाएंगे। किसी भी इंसान को चाहे वह कोई भी रिश्ते में हो, क्या ये इजाजत देनी चाहिए की वह आपको अपने संकल्प सिद्ध करने से रोक दे? या किसी भी हालात के चलते अपने संकल्प को सिद्ध ना होने देना क्या ज़िन्दगी का सबसे महंगा सौदा नहीं? हालातों को फिर हम कोशिशों से अनुकूल बना सकते हैं पर इंसानों पर यही बात लागू नहीं होती।
अंत में आपका जीवन कितना सार्थक हुआ इसकी जिम्मेदारी भी आपकी थी और जवाबदेही भी आप की ही बनती है।
0 Comments