क्या है अच्छी ज़िंदगी की ज़मानत?
हमारी ज़िन्दगी के किस पक्ष को ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत है इसे जानने के लिए अगर अपनी रोजमर्या के जीवन को कुछ भागों में बांट दें, तो उसे समझने में आसानी होगी। असल में ज़िन्दगी को देखने की प्रक्रिया का यही सिरा सीधा है। तो कुछ इस तरह से हम अपने दैनिक जीवन को वर्गीकृत कर सकते हैं जिसका सीधा असर हमारे सुकून पर पड़ता है:-
सेहत सबसे बड़ी नेमत
यहां बात हो रही है - शारीरिक और मानसिक, दोनों सेहत के बारे में। ज़्यादातर लोग शारीरिक पक्ष पर ही ध्यान देते हैं। पर हमारी मानसिक सेहत कैसी है ये हमारी ज़िन्दगी की गुणवत्ता बताती है। जब मन महकेगा तभी मुखड़ा दमकेगा। इसलिए यह ध्यान दिए जाने वाला सबसे अहम पक्ष है।
पैसा - थोड़ा है, थोड़े की ज़रुरत है
जब हम पैसा उतना ही जोड़ते हैं जितनी हमे वाक़ई जरूरत है तब तक ज़िन्दगी खूबसूरत है। जैसे ही उस से ज़्यादा चाहिए, हम उसी दिशा में सारी मेहनत झोंक देते हैं, फिर पैसा तो आता है पर जीवन की बाकी खुशियां पीछे छूट जाती हैं।
खुद की ग्रोथ (विकास)
सिर्फ तरक्की के लिए नहीं बल्कि अच्छा महसूस करते रहने के लिए भी ज़रूरी है। जब भी कभी मन थोड़ा भारी लगे तो इस तरफ ध्यान ज़रूर देना। नौकरी, पैसा, रिश्ते और ज़िन्दगी के तमाम पैमाने बेगाने से लगने लगते हैं जब हम खुद के अस्तित्व में कोई प्रगति नहीं देख पाते। भटकाव घेरने लगता है। एक प्रगतशील व्यक्तित्व ही जिंदगी के सभी आयामों को खुशनुमा बनाये रखता है।
रिश्ते
अगर रिश्तों का ताना-बाना मिठास पिरोये है तो तनाव काफी कम रहता है। यही वो कड़ी है जो हमारी उत्पादकता पर बड़ा गहरा असर करती है। रिश्ते में नाखुश व्यक्ति काम कर तो सकता है पर बेहतर कभी नहीं कर पाता, अपना श्रेष्ठ नहीं दे पाता। हमारे रिश्ते खुशगवार हों, हम सभी चाहते हैं। पर अगर चाह भर लेने से हो जाता तो बात ही क्या थी! तो क्या करें ऐसा, जो होने लगे? जो चाहिए वो देने लागिये। प्यार चाहिए, प्यार दीजिये। सम्मान चाहिए, सम्मान दीजिये। देखभाल चाहिए, देखभाल करिये। यकीन मानिये, ये फार्मूला काम करता है।
करियर
अपने करियर की परिभाषा खुद बनाइये। अपने दोस्त, रिश्ते किसी दूसरे के करियर से प्रभावित ना हों। सबका जीने का तरीका, पसंद और स्वभाव अलग होता है। जिसका जो मन हो उसी हिसाब से अपना काम चुने तो ही अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाएगा और समाज को भी कुछ अच्छा मिलेगा। जैसे मछली को उड़ने के लिए प्रेरित करना व्यर्थ है और चिड़िया को तैरने के लिए कहना। इसलिए कोई ज़बरदस्ती से करियर का चुनाव करने की भूल कभी ना करें।
अपनी परवाह
इसका मतलब सिर्फ अपनी सेहत या खुद के विकास से नहीं है। यहां बात हो रही है खुद के लिए इत्मीनान के लम्हे तलाशने की, ख़ुशी के पल बनाने की, आराम फरमाने की। जिस तरह रोज के लिए खाना खाना ज़रूरी है वैसे ही रोज अपनी परवाह के लिए वक़्त निकालना ज़रूरी है। ज़रा समझिये, ये ज़रुरत आपके परिवार की भी है, अगर आप खुशमिज़ाज़ रहेंगी तो वही तरंगें घर में बहेंगी। सैर के लिए निकल जाना, संगीत सुनना, ध्यान करना, पार्क में टहल आना, साइकिल चलाना, दोस्तों के साथ ट्रैकिंग कर आना, घुमक्कड़ी, या कोई कला, करियर या खुद के विकास के लिए नहीं, खुद की ख़ुशी के लिए करना है। मन को उन्मुक्त करने का जरिया है।
घरेलू जीवन
जो समय हम घर पर होते हैं। जहां बनते और निभाए जाते हैं रिश्ते, अपनों के लिए, अपनों के साथ बनता है खट्टा-मीठा ज़ायका। समय को इस तरह प्रबंधित करना है की हर भाग की तरह यह भाग भी बराबर खिला रहे। पूरी तरह समर्पित हो गये तो खुद को खो देंगे। संतुलन बनाये रखिये।
खाली वक़्त
यह वो समय है जिसे हम अपनी मर्जी से कुछ ना करके बिताते हैं। जैसे एक कप चाय लेकर घर की बालकनी या छत पर चले जाएं। पक्षियों का चहचहाना, पेड़ - पौधों की सरसराहटों में चुस्कियां लें। हमारे पास इतना वक़्त ज़रूर होना चाहिए जब हम करियर, ग्रोथ, और कोई भी चिंता को छोड़कर, हर तरह के दबाव को भुला कर, शांत और सरल मन से और मर्जी से खुद के लिए समय का उपयोग कर सके।
सभी पहलुओं को धीरे धीरे समझिये और गौर करिये। आप पता लगा पाएंगे की किस भाग को ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत है। क्या पीछे छूट गया, कौनसा पक्ष मज़बूत है, सबका ख्याल रख पाना मुश्किल ना होगा।
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