अगर शिद्दत से सोंचा है तो होना ही है
भविष्य में जो खूबसूरत होने वाला है, कल्पना उसी की झलक है
बेहद कारगर तकनीक है कल्पना। ये जन्म लेतीं हैं हमारे दिमाग में। यहाँ तस्वीरों से ही किसी व्यक्ति को या हालात को देखा और सोंचा जाता है। हम जब भी कोई परिस्थिति के बारे में सोंचते हैं तो हमारा दिमाग उसका एक खांका सा बना लेता है और लगातार यही सब सोंचता रहता है। अब हम सोंचते कैसा हैं - अच्छा या बुरा, वो तो हमारा इनपुट है दिमाग को। आगर हम पुरानी परेशानियों या दुखों के अनुभव को आधार बनाते हैं तो उससे बनी नकारात्मक कल्पनाओं में फंसकर रह जाते हैं। तब ही तो हमे अपने कल की तस्वीर में चटख रंग नहीं नज़र आते।
कल्पनाएं बेवजह नहीं होतीं। उनका भी आधार होता है। अगर हम चाहते हैं की वे समय से साकार हों तो हमे उन्हें पुख्ता आधार देना होगा। तो अगर मकसद है तो उसकी सकारात्मक तस्वीरें भी मन की आंखों में बनाइये। फिर रास्ते अपने आप बनने लगेंगे। हाँ ये जादू जैसा लगता है पर है विज्ञान। RAS (Reticular Activating System) इसमें हमारी नज़र अपने आप ही उन रास्तों को ढूंढ लेती है जो हमारे कल की तस्वीरों से मिलती हैं।
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