जीवन संगीत सुनो!
वो नज़ारे जो काम और जिम्मेदारियों के बीच छूट जाते हैं। कभी कभी स्टीयरिंग छोड़ कर बाजू बैठ कर भी सफर का मज़ा लेना अच्छा है। ये अनुभव आपको अनदेखा दिखा जाएगा, जो मन की आँखों को खुशनुमा कर देगा।
उस दिन बाजार की तरफ जाते वक़्त मेरी गाड़ी अचानक बिगड़ गई। मैकेनिक को बुलाया और मरम्मत के लिए गाड़ी उसके हवाले कर मैंने घर लौटने के लिए बस पकड़ने की सोंची। ये घर तक का छोटा सा सफर नज़रिये के लिहाज़ से मुझ में क्या कुछ बदल देगा इसका मुझे ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था। मैंने टिकट ली और मुझे खिड़की वाली सीट भी मिल गई। मैं आराम से बैठ गई और बाहर दृश्य देखने लगी। उस रस्ते मेरा रोज़ ही जाना पड़ता था। पर आज जो मैं देख रही थी वह पहले कभी नज़र नहीं आया था।
पास ही फुटपाथ पर एक परिवार मिट्टी से बनी खूबसूरत चटक रंगों से सजी कालकृतियां प्लास्टिक पे बिछा कर ग्राहकों इंतज़ार कर रहा था। उनका छोटा बच्चा नंगे पैर वही एक मिट्टी के खिलौने से खेल रहा था। आगे ऊंची इमारतों के बगल से ही एक कच्ची बस्ती में कुछ तम्बू और कुछ कच्चे-पक्के घर थे जिनमे डिश एंटीना भी लगा था। वहीँ पास में कुछ बकरियां और मुर्गियां भी सड़क से गुजरते ट्रैफिक को ताक रहे थे। शहर के उस फ्लाईओवर ने बड़ा सम्मोहित किया जिसके पिलर की दीवारों को पारंपरिक चित्रकारी से सजाया गया था। एक बड़े से खाली प्लाट में कुछ उत्साहित बच्चे बिना चप्पल-जूतों के क्रिकेट खेलते दिखे।
जैसे ही बस सिगनल पर रुकी तब उस बच्ची को देख के हैरान रह गई जो रोज गाड़ी की खिड़की खटखटाती थी। धुल-मिट्टी से सनी, मैले कपड़ों में भी उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था।अच्छा ही है की सुंदरता अमीरों की बपौती नहीं। पहले तो उस साठ सेकंड के समय में मै चारों तरफ से आ रहे हॉर्न की आवाज़ों से किस तरह खुद का सर दर्द न हो, इसी जद्दोजहद में लगी रहती। लेकिन उस दिन सारा शरीर जैसे आँख बन गया था।
उस दिन से पहले वहां उस रास्ते से अमूमन रोज ही आना-जाना रहता पर भारी ट्रैफिक में गंतव्य तक पहुंचने की हड़बड़ाहट के चलते ये अनुभव अब तक अनछुए ही रह गए थे। रोज ज़िन्दगी अपने रंग-बिरंगे स्वरूपों में हमसे रूबरू होती है। अक्सर करके हम अपने जीवन की आपाधापी में इतना खो जाते हैं की आजू-बाजू सब धुंधुला कर देते हैं। इसलिए कभी कभी गाड़ी की स्टीयरिंग किसी और को थमा हमे पिछली सीट पर बैठने का सुखद अनुभव ज़रूर करना चाहिए।
बात जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने की नहीं है। बात है खुद भी जीने की, जो अगर रोज़ ना हो पाए तो इसके लिए अवकाश लें। सारी व्यस्तताओं को परे धकेल अपनी साँसों को भी तवज्जो दें। ये मुश्किल नहीं है। जो जीवन संगीत आप पीछे छोड़ आये हैं, उस माधुर्य में फिर से डूबें।
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