क्यों ज़रूरी है मुस्कान को न्योता देना?
हर भाव, हर सोंच, हर बात में एक आकर्षण होता है जो अपनी ही तरह के ख्यालों और परिस्थितियों को खींचता है। ये आकर्षण है। गुरुत्वाकर्षण के नियम हमारी सोंच पे भी लागू होते हैं। जैसे हमारे कदम डगमगाते ही हमारा गिरना तय है वैसे ही हमारे भीतर का मिज़ाज़ (हमारा रवैया या हमारे विचार) ही हमारी बाहर की फ़िज़ा (हमारे काम और व्यवहार) को 100% प्रभावित करता है।
अपने खुद महसूस किया होगा की जब भी हम खुद को नकारात्मक अँधेरे में घिरा पाते हैं हमारा किसी भी काम में मन नहीं लगता। मानते हैं ना ये आप भी की कैसे आप लगातार नकारात्मक सोंच से असफलताओ और निराशा को अपनी ओर खींचते रहते हैं। बेचैन और तनाव में जीने वाले लोग खुशियों को पहचान भी नहीं पाते, केवल ख़ुशी की अपेक्षा में ही जीते रहते हैं।
खिलखिलाहट से लबरेज़ रहने वाले परेशानियों में भी मुस्कुराना नहीं भूलते। वे किल्लत में भी किस्मत ढूंढ लेते हैं। नुक्ताचीनी में सिर्फ चीनी पर ध्यान देते हैं। इनकी सोहबत में खुशबू महकती है। लोग इनके पास बैठना चाहते हैं। इनकी ठहाकों की आवाज़ें आराम से सुनाई पड़ जाती हैं। ये दिलेर होते हैं। दुःख, कठिनाई, परेशानी इनकी ज़िन्दगी में भी बराबर आती रहती है पर ये उनको तवज़्ज़ो नहीं देते। इसलिए कैसे भी हों हालात, इनके काबू में ही रहते हैं।
अच्छी नींद लेने के बाद, सुबह उठाने के बाद पहली बार जब आप अपना चेहरा देखते वक़्त मुस्कराहट दें, अपनी चमकती आँखों को देख कर पहले खुद खुश हों फिर घर में सभी को यही मुस्कान दें तो बहुत मुमकिन है की पूरा दिन अच्छा ही बीतेगा।
और इसके विपरीत जिसे चमकती आँखों की जगह लुढ़क रही झुर्रियां दिखे तो भले ही नींद तो पूरी आयी हो पर उनकी आँखों की चमक फीकी ही रहेगी और उनके जीने के हौसले भी सोये ही रहेंगे। मुमकिन है सारा दिन हताशा और उदासी में बीते।
सोंचिये, फूलों ने खिलने के लिए सुबह ही क्यों चुना? क्यूंकि नींद से जागते ही ताज़गी को आमंत्रण देने की परम्परा है। सुबह की हलकी ठंडी हवा भी नए अहसासों को जगाने के लिए हमे छू कर गुजरने की कोशिश करती है। यही संदेष तो पक्षी भी चहचहा कर देते हैं की ज़िन्दगी में कलरव को बुलाइये। प्रकृति की धुन पे नाच ले पागल!
खिलो! मुस्कुराओ! महका दो घर आँगन!
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