महाशिवरात्री हो तो ईशा वाली हो!
ईशा फाउंडेशन | कोयम्बटूर
जिसमें शामिल होने की परम इच्छा तब से बड़ी तीव्र रही है जब से आदियोगी को देखा है। अपने ही तरह का एक अलग अनोखा कार्यक्रम जो पहले न कभी देखा था, ना ही सुना था। जिसका समय ही अपने आप में इतना रोचक था - शाम 6:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक - जिसका सीधा मतलब था 12 घंटे की म्यूजिक नाइट। जिस कार्यक्रम के बारे में जानकर ही मन हिलोरें ले वो वास्तव में कैसा अनुभव देगा, यह बता पाना आसान नहीं।
एक के बाद एक साल बीत रहे थे और मेरा जयपुर से कोयंबटूर आने का प्लान हो नहीं पा रहा था। हर साल जब भी इंस्टाग्राम, फेसबुक पर महाशिवरात्रि के ईशा के पोस्टर्स देखती, उत्सुकता के साथ मन में एक टीस सी उठती की इस बार भी हो न सका, पर अगली बार निश्चित ही जाऊँगी। ऐसा करते करते दो से चार साल बीत गए। पहली बार, जब पता पड़ा की ऐसा 12 घंटे का म्यूजिकल जागरण हैं तो जाने कैसे हॉस्टल के कमरे मे लैपटॉप पर ईशा का पूरा महाशिवरात्रि का प्रोग्राम देखा था! आज भी याद करती हूं तो रोमांचित हो उठती हूं। किसी को बताती हूँ तो लगता है कि इतनी देर अकेले कैसे जाग पाई होंगी? जिस ऊर्जा ने मुझे 15 इंच की लैपटॉप की स्क्रीन पे 12 घंटे पूरे जोश और उत्साह के साथ बांध लिया, बिना किसी थकान या उबासी के, उसका लाइव ईशा महा शिवरात्रि का प्रोग्राम जाने कैसा होगा यह? यही सोच-सोच के हर साल आस लगाती कि जरूर जाना है अब की बार, और ये अब की बार आया महा शिवरात्रि 2023 मे।
शहर नया था, रास्ते अजनबी और भाषा तो बिल्कुल ही अलग।और मुझे जाना था 60 किलोमीटर का सफर तय करके अपने ईशा योगा सेंटर जहाँ मैं महा शिवरात्रि 2023 को अपनी आँखों से देखने वाली थी - लाइफ। तो बस 18 फरवरी 2023 की सुबह हुई और मैं उठते ही तैयार हो गई अपने सालों के सपने को जीने। आदियोगी की खुमारी इतनी थी कि मैं सुबह के 11:00 बजे ही ईशा योगा सेंटर पहुँच गई।
जैसे ही वो तिकोना ईशा का केसरी बोर्ड देखा तब से लगा बस मेरा सपना लाइव चालू हो गया। प्रकृति से प्रेरित हरे रंग की सजावट वाला प्रवेश गेट था, जिसके आगे मेरे जैसे कई “ईशा प्रेमी” अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी के लिए फोटोज की तैयारी कर रहे थे।और तब से स्वागत चालू हो गया। 20 से 30 की उम्र में दो वर्ष के बच्चे की मुस्कुराहट लिए , हाथ जोड़े ईशा वॉलंटियर्स हम सभी को कितनी ही बार, हर बार झुक के नमस्कारम करते।और ऐसा पग-पग होता।
मैं हांफती हुई (क्योंकि एक किलोमीटर पहले ही ईशा की बस में उतार दिया, तो वहाँ से मुख्य द्वार तक पैदल ही पहुंचना था। लाजमी भी है, इतने लोग आने के थे, ऐसी व्यवस्था जरूरी भी है) अपनी उत्साह की चमक को आंखो में टिमटिमाती हुई रजिस्ट्रेशन डेस्क तक पहुंची। वहाँ लाइन में चलते हुए ही फिर से स्वागत हुआ दो मुस्कुराते चेहरों से और एक जरा सख्त आवाज से क्योंकि उसने चश्मा और मास्क पहन रखा था जिसने वो ईशा का गोदावरी वाला रिस्टबैंड पहनाने में मेरी मदद की।
इसके बाद मैं अंदर की तरफ जाने लगी। चिलचिलाती धूप में भी महाशिवरात्रि का उत्साह परवान चढ़ रहा था। ज्यादातर उत्साहि मेरी उम्र के ही थे। मस्त, खूबसूरत और उल्लास से लबरेज। हाए - नजर ना लगे ऐसी दीवानगी को।
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