महाशिवरात्रि 2023 - अनुभव | भाग 3





2:30 बजे की धूप कैसी होती है? इसका मुझे पूरा स्वाद आ रहा था। जिस पर मेरे पसंदीदा काले कुरते ने आग में घी का काम किया। किसी तरह अपने को दो दुपट्टों से अपने माथे के तापमान को बढ़ने से बचाने का कुछ-कुछ सफल प्रयास कर रही थी मैं। कुछ देर तो मैंने वहाँ बैठकर उन लोगों से ईर्षा की, जिन्होंने सफेद कपड़े पहने थे और जिनके पास छाते थे, तोलिए थे। फिर मैंने खुद को रीलैक्स किया और पास बैठे लोगों से बातें करना शुरू कर दी क्योंकि इस चुभती धूप में आदियोगी पे ध्यान लगा पाना कतई मुश्किल काम था। अनजानों से बातें करना मुझे अच्छा लगता है, एक अलग सा सुख मिलता है। सबको नहीं होता, पर मुझे यह अच्छा लगता है क्योंकि आदियोगी से बातें नहीं हो पा रही थी तो मैंने उन के बनाये इंसानों से बातें करना शुरू कर दिया।




जिनसे अभी अभी मिले हों, उनसे बातें करने का मज़ा इसलिए भी है क्योंकि हम दोनों एक दूसरे के लिए एकदम नए- एकदम कोरे हैं । और नई चीजों से लगाव जल्दी होता। वैसे ही नए लोग भी आकर्षित करते हैं। हमेशा भले नहीं, पर ज्यादातर नया पसंद आता है। कम से कम तब तक जब तक वो पुराना न हो जाए या। कोई दूसरा नया न आ जाए। ये कुछ वैसे ही एहसास होता है जैसा नए नए इश्क में होता है। और जब इसकी खुमारी आती है तो आसपास क्या हो रहा है, कैसा हो रहा है, इन सब का ज्यादा ख्याल रहता नहीं। तो बस कब 5:30 बज गए पता नहीं चला। सर पर दुपट्टा सम्भालते हुए, धूप से आंख मिचौली खेलते हुए, बतियाते हुए तब ध्यान वापस गोदावरी में आया जब मेरा पसंदीदा गाना- कैलाश खेर की आवाज में, उन बड़े बड़े बांस के खंभों पर उंचाई पर लटकते स्पीकर्स से बजा- “दूर उस आकाश की गहराइयों में, एक नदी से बह रहे हैं आदियोगी”




इस गाने को सुनते हुए आदियोगी को निहारते रहने की तीव्र इच्छा रही है मेरी। पर मैं जब भी ईशा आई तब ऐसा कर पाने का मौका नहीं मिल पाया। और उस वक्त तो यह गाना बाकी हर आवाज को चीरता हुआ स्पष्ट मेरे कानों में जैसे ही आया, मैं एकदम सब रोककर और सब को रोककर, उस गाने के साथ मेरे आदियोगी को निहारने लगी और सब मुझे। यह अनुभव भी एक सुखद भाव है।धीमे धीमे पीना अच्छा लगता है। गाना बज रहा था और ऊरू गहराइयों में डूब रही थी। चहक रही थी, महक रही थी। इस समय मेरा शरीर मुझे सिर्फ दो भागों में महसूस हो रहा था।आंख और कान मुझे डूबते सूरज की मध्यम रौशनी में सिर्फ आदियोगी दिख रहे थे और कानों में कैलाश। हाँ, जैसा हीरो के लिए हिरोइन को देखकर उसकी दुनिया रुक सी जाती है वैसे मेरे लिए सब ठहर गया था - पूरी उर्वी।
Reactions

Post a Comment

0 Comments