महाशिवरात्रि 2023 - अनुभव | भाग 2

                                  



भारत के कोने कोने से लोग छुट्टी लेकर, इस महामेले के साक्षी बनने आए थे। कोई कहीं से भी, कितनी भी दूर से आ रहा था, कितना ही थका हुआ क्यों ना था, उसकी हर थकान, ईशा वॉलनटिअर्स की कभी ना जाने वाली मुस्कान से थोड़ी कम होती और रही सही आदियोगी की झलक मिलते ही छूमंतर हो जा रही थी। लेट ना हो जाऊं के चक्कर में मैं सुबह 11:00 बजे ईशा योगा सेंटर पहुँच चुकी थी। अब करूँ क्या? क्योंकि प्रोग्राम तो शाम 6:00 बजे शुरू होना था। तब तक का भी अपना सफर था। जो छोटा नहीं था- पूरे 7 घंटे बीतने थे तब जाकर बजते शाम के छे।




थोड़ी आगे आयी- एक वॉलंटियर से पूछा तो पता चला बाजू में पंडाल लगाया है उनके लिए जो अपने ट्रैवल प्लान की वजह से पहले ही पहुंचने थे और मेरे जैसे अति उत्साहियों के लिए, जिनसे अपने ठिकानों पर महा शिवरात्रि के दिन बैठा नहीं जा रहा था, या यूं कहें जो शाम छः का इंतजार अपने घरों में रहकर कर पाने में असमर्थ थे। क्या आप कभी किसी फंक्शन या पार्टी में समय से एक दो नहीं बल्कि 7 घंटे पहले पहुंचें है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि ये काम सिर्फ उरु ही कर सकती है।




पर पहली बार ऐसा हुआ कि मुझे ज़रा सी भी ऊब महसूस नहीं हो रही थी। मैंने पंडाल के नीचे एक छोटी जगह खाली देखी और बैठ गई। नीचे सीधे जमीन का स्पर्श था जिसपर अच्छी-खासी, पतली-मोटी, सूखी घास थी। कहीं और की बात होती तो शायद मैं चिढ़ जाती, पर यहाँ ईशा में मैं सहज ही बैठ गई और दूर से जो आदियोगी की छोटी झलक मिल रही थी, उससे बातें करना शुरू कर दिया। ₹150 की चटाई भी वही मिल रही थी, पर मुझे यूं ही बिना किसी चीज़ के बैठने था, मैं बैठी रही। यू बिना पानी खाने के मेरा सिर दुखता नहीं भन्नाने लगता है। पर उस दिन, एक डेरी मिल्क चॉकलेट, ₹50 का नारियल पानी और ₹70 का पाइनएप्पल जूस मेरे लिए पर्याप्त थे।




लोग वीडियो देख रहे थे, नाश्ता कर रहे थे, आपस में बातें-ठहाके लगा रहे थे और कुछ नहीं तो ऊँघ रहे थे। मैंने खुद को पहली बार इतना सहज पाया था ऐसी परिस्थिति में। पिछली दो रातों से जागने के बाद भी मेरी आँखों में सुस्ती कहीं नहीं थी। आज शायद मैं सिर्फ उत्साह से बातें कर रही थी। बैठने की जगह 1:00 बजे से खुलनी चालू होनी थी। मुझे लगा कि इतनी तेज़ धूप में कौन 1:00 बजे जाकर कुर्सी पर अभी से बैठेगा? सो मैं वही पंडाल में 2:30 बजे तक बैठी रही। आदियोगी से बतिया रही थी की 1 बजे मुलाकात हुई मेरे से 10 साल छोटी लड़की से जो जयपुर से काम से छुट्टी लेकर, अकेले, ईशा की महा शिवरात्रि 2023 देखने आई थी। चारवी का ये उत्साह प्रेरणा देने वाला था। मैं रेस्ट्रूम जाने के लिए उठी तो सोचा गोदावरी- जहाँ मेरे बैठने की व्यवस्था है, ज़रा देख तो लूं उस जगह को।




गई तो पता चला वाकई लोग वहाँ 1:00 बजे से आना चालू हो चुकें हैं।और रैम्प- जहाँ सद्गुरु चक्कर लगाते हैं, उससे सटी सारी सीटें हथिया ली गयी हैं। तब मुझे समझ आया कि 1:00 बजे बैठने के लिए कपाट खुलने का मतलब क्या था? मैंने पहले सोचा रैम्प के पास जमीन पर ही बैठ जाती हूं। पर अच्छा किया कि मैंने ये विचार त्याग दिया क्योंकि ज्यादा देर तक मैं ऐसा नहीं कर पाती और रात को तो कतई नहीं। एक तो बड़ी समस्या यह है कि लोग अपने बैग्स को भी कुर्सी पर रखते हैं तो पता नहीं चलता कि कोई उस जगह पर आने वाला है या उनके लगेज ही कुर्सियों पर आराम फरमा रहे हैं। और हम बेचारो की तरह कोई सटीक जगह ढूंढ रहे। हाँ, इस बात ने मेरा मन कुढ़ाया जरूर था उस वक्त। पर इस बात को मैं अपने उत्साह पर हावी न होने देते हुए एक ठीक-ठाक जगह जा देख कर बैठ गयी। भले ही दो लाइट्स के खंभों के बीच में से आदियोगी दिख रहे थे पर दिख तो रहे थे। क्योंकि उस वक्त आने वालों को वो भी नसीब नहीं हो पा रहा।




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