मैं अकेली थी और मेरी तरह कई और भी अकेले आए थे महाशिवरात्री का यह विहंगम कार्यक्रम देखने। पर वहाँ उस वक्त ऐसा लग रहा था हम सब एक दूसरे के साथ हैं। जहाँ मैं बैठी थी वहाँ से मंच पे चल रहा कार्यक्रम सीधा तो नहीं दिख रहा था, देखा तो मैंने भी वहाँ लगी हुई बड़ी बड़ी स्क्रीन्स पर ही। उन लाखों लोगों के बीच एक हिस्सा मेरा भी था। हाँ, मेरा मन बार बार अपनी मौजूदगी को वहाँ दर्ज करा रहा था, उस माहौल को धीमे धीमे मेरा मन पी रहा था। नशा चढ़ता जा रहा था।
उस ठंडी रात में गर्माहट बढ़ती जा रही थी। छे से आठ और आठ से दस तो ऐसे गुजरे जैसे कोई आधा घंटा हुआ हो। कुछ पता ही नहीं चला उछलती उत्सुकता में। पहले तो चढ़ते दिन की तेज धूप में तपे और अब चढ़ती श्याम फिर गहराती रात के आगोश में जा रहे थे संगीत में थिरकते तन और मस्त माहौल में मचलते मन से। किसी को हाथ पकड़कर खींचने की जरूरत नहीं थी नाचने के लिए। क्योंकि शिवरात्रि तो सबके भीतर नाच रही थी। जो अंदर दिख रहा था वो अंदर का ही प्रतिबिंब था।
जैसे ही सद्गुरु रैंप की तरफ बढ़ते तो जैसे हवा चलती और दाईं बाईं ओर से सारे लोग रैंप से चिपक जाते के मानो गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की जगह रैंप में खिसक गया हो। कुछ मिनटों के लिए अपनी प्रिय गुरु की एक अदद झलक पाने के लिए यह अल्हड़पन जायज है। और बाकी अपनी कुर्सियों पर खड़े हो जाते। ऐसे में मेरे जैसे हाइट वालों को ज़रा मुश्किल होती। पर कोई बात नहीं, देखा तो हमने भी और भावुक हम भी हुए। अरे यार सद्गुरु ठीक सामने जो थे। सेल्फी वाला काम मैंने नहीं किया, मैंने आंखो में ही सारा दृश्य सजा लिया। ऐसा सादापन- ऐसी कोमलता से जुड़ें हाथ, मानो उनके घर (ईशा उत्सव) शिवरात्रि का उत्सव मनाने के लिए आने पर वे सबका आभार मान रहे हो।
ऐसी दिव्यता सचमुच ये मानव नहीं महामानव ही है जो पृथ्वी पे हैं, जिनसे पृथ्वी संभाली हुई है। सद्गुरु जिस तरह थिरकते है अपने भीतर बज रही धुन पर वह नृत्यशैली तो सीखने जैसी है - एकदम बेपरवाह - उन्मुक्त- मदहोश जैसे ही उनके कदम थिरकते ऐसा लगता जैसे दक्षिण का ब्रह्माण गूंज रहा हो एक स्वर में। ऐसा नजारा अमूमन किसी नामी हस्ती के लिए होता है जैसे कि फिल्मी सितारा जिसके लिए हजारों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है, पर यह दृश्य था लाखों का अपने प्रिय गुरु सद्गुरु के लिए जग्गी वासुदेव जी के लिए। यह आकर्षण बयां करने जैसा है ही नहीं। यह बस महसूस करने के लिए ही है, भीतर से।
अमूमन भजन संध्या या जागरण के गाने जिस लय-ताल-संगीत में गाये-बजाये जाते हैं, यहाँ ईशा की महा शिवरात्रि में गाए जाने वाले बिल्कुल अलग ही जायके के होते हैं। इनका संगीत अलग ही दुनिया का होता है। इसमें मिठास है, मस्ती है, मगन हो जाने के लिए सभी रस है।और उस रस की बारिश में खुद को भीग जाने से कोई नहीं रोक सकता। आलम वो था जब घड़ी का कांटा 12 से दो की तरफ रुख कर रहा था। अधिकतर दीवाने अपनी कुर्सी कब की छोड़ चूके थे, शिव के मस्ती रस में भीगते हुए, उन सब का नशा देखने लायक था।
क्या जवान- क्या बूढ़ा, कहा जा सकता है कि सभी एक दूसरे को झूमने का कॉम्पिटिशन दे रहे थे। हाँ, कुछ 1-2 परसेंट ऐसे भी थे जो शायद थकान की चादर ओढ़े हुए थे, क्योंकि इतनी आवाज़ों में भी उन्हें नींद से कोई बचा नहीं पाया। मुझे उनके लिए बुरा भी लग रहा था क्योंकि हर व्यक्ति अपने काम से छुट्टी लेकर, यहाँ कोयम्बटूर पहुँचकर, यहाँ का टिकट लेकर, पैसा खर्च करके आया है, सोने के लिए नहीं आया। तो मुझे उनका यह मौका यूं ही व्यर्थ होता देखकर बुरा लग रहा था।
जब आप अपने से दोगुने उम्र के अपने गुरु को अपने से चौगुनी मस्ती में झूमता हुआ देखते हो। तो उनसे दीक्षित होने के नाते आपमे भी वो ऊर्जा बहने लगती है जो उस वक्त की दरकार है। दो से चार का समय थोड़ा कठिन था क्योंकि अब तक हर दीवाना अपनी पूरी ऊर्जा पिछले आठ घंटों से लगाकर- झोंककर, अब थोड़ा ढीला होने लगा था। लेकिन हमारे गुरु, वे तो एक ही जैसे थे जैसे 6:00 बजे आए थे वैसे ही 4:00 बजे तक थे। और उसी ऊर्जा के साथ हमें सुबह के 6:00 बजे “शंभू-शंभू, शिव शंभू” का मंत्र उचार कराके शिवरात्रि का जागरण संपन्न किया।
मुझे लगता है सारा खेल मन की ऊर्जा का है। यहाँ आकर हिचकिचाहट जैसे छुट्टी पे चली जाती है। थकान को यहाँ आने में शर्म आती है। यहाँ तो उल्लास सहजता, शांति, आनंद, उन्मुक्तता, उत्साह, आतुरता, उमंग, मुस्कुराता है, खिलखिलाता है, नाचता। इन भागों के आगे जीवन मे जूझ रहे, किसी तरह की पीड़ा, दुख, बेचैनी, थकान, उदासी गम, हतोत्साहित नहीं कर पाते। इसलिए ऐसेश क्तिशाली प्रांगण में कदम रखना जरूरी है। टीवी पे यही तो नहीं मिल पाता। खुद को इस अनुभव से महरूम रख कर खुद के साथ नाइंसाफी ना करे। समय निकालें और प्लान करे जरूर आएँ।
ये बेशुमार आनंद की एक खुराक है। अपने उत्साह की झलक में ऐसे देती हूँ कि आज जब मैं अपने मन की बातें यहाँ सुना रही हूं तब महा शिवरात्रि 2023 को पूरा एक हफ्ता हो चुका है। पर इसका हैंगओवर नहीं उतर रहा बिलकुल नहीं। हर व्यक्ति यही पूछ रहा है तुम्हारा चेहरा आज कल इतना ब्राइट क्यों है? मेरा एक ही जवाब है, ईशा की महा शिवरात्रि।
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