वो नाते, जो नेमत की तरह मिलते हैं

खामोशी के मौसम मे बने रिश्ते 

कहे बिना ही बन जाते हैं, कहे बिना ही बने रहते हैं।




होते हैं कुछ एसे रिश्ते जिनसे मुलाकात ज़िंदगी के किसी मामूली से दिखने वाले वक्त मे हो जाती है। गर जुड़ना चाहें तो जुड़ भी जाते हैं। और जो छोड़ दिया, तो छूटते नहीं, ये कहीं भीतर ठहर जाते हैं। हाँ बेशक ये साथ रहने नहीं आते , ये तो बस, कभी - कभी यादों के बीच में से झाँकने आते हैं। 

जब जिंदगी बुनी जा रही होती है, तब ताना शायद सबका एक - सा ही रहता है, जो सांस लेने की बात करता है। पर बाना - एक खास तरह की तार है, इसमे बुने जाते हैं कुछ अहम किरदार। ये वो नाते हैं, जो नेमत की तरह मिलते हैं। इनके होने का इत्मीनान ऐसा है जैसे तिजोरी में संभाल के रखे गहने। अपने पास, जैसे की अपनी ही अमानत हो।   

ऐसे रिश्ते जिन्हे हासिल हैं, वही इन मोगरे की कलियों को समझ सकता है जो उसकी जिंदगी की डोरियों में गुंथे हैं, जो छूटे, तो फिर कहीं और महकेंगे। इन्हें संग रखें - ना रखें , अपने मन की डोरियों मे हम यही उलझाते -सुलझाते रहते हैं। ये हैं वो नाते जो मन को बड़े भाते हैं। मन ही मन कई बार हम अफ़साने भी लिखते हैं। कभी- कभी, थोड़ा - थोड़ा ही लिखते हैं, पर पढ़ा बहुत जाता है। 

जैसे कलाई मे पहने कड़े की तरह, दुपट्टे के एक छोर पे लटकी बाली की तरह या फिर शाम में बारिश के बाद बिजली के तार पे पानी के मोतियों को सरका के गिराती नन्ही चिड़िया की शक्ल मे, इन रिश्तों का अहसास हमे अक्सर स्थिर होने पर होता है।  

यहाँ बातें शब्दों मे नहीं होती, जो शब्द से छुआ और नाराज हो गए तो! मन तो करता है की ढेर सारी बातें करें। उनके मन की उंगली पकड़ के ले चलें उन्हे इत्मीनान के आँगन में फिर ढलती शाम के पहलू मे उनके साथ खोलें ज़िंदिगी के वो पन्ने जिनके बीच रखी हैं सूखे गुलाब की पंखुड़ियाँ, महकने दें उन लम्हों को, गुलाबी होने दें शाम को। 
हाँ, वक्त को ठहरने बोला है। जब तक एक इत्मीनान-भरी नज़र  का स्नेहिल स्पर्श मन को हो जाए। क्यूंकी रिश्ते मन से बनते हैं, मन से बंधते हैं, तो मन से ही बने भी रहें। बने रहते भी तो हैं .........

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