15th अगस्त है - तो !

 है तो बना रहे!

खयाल कीजिये की एक सिपाही के मन के भीतर क्या चलता होगा जब वो भारत के बुलावे पे अभी - अभी छुट्टी पे आने के बावजूद, तुरंत देश के लिए सरहद की तरफ बढ़ जाता होगा ... 



आर्मी के पीछे खड़ी होती है एक और आर्मी। ये आर्मी होती है, उसके परिवार की - माँ की, पिता की, पति की, पत्नी की, उसके जिगर के टुकड़े - उसके बच्चे की। ऐसे ही एक आर्मी अफसर की बेटी से सुना था की जब पिता जी को देश के लिए लड़ने जाने का आदेश आता है तब हमारी माँ इस बात से घबराती नहीं हैं और परिवार ना घबराये इसलिए वे इस खबर को गर्व और सम्मान की बात बना देती हैं - कहती हैं आपके पिता जी जंग में जा रहे हैं। और ये बेटी है - अनुष्का शर्मा (भारतीय सिनेमा से) जिनके पिता हैं कर्नल अजय कुमार शर्मा। 

ऐसा भी बहुत ज़्यादा तो क्या ही मिलता है इन सैनिकों को जिसके बदले वे अपनी जान की बाज़ी लगाने में भी नहीं हिचकते। कहां से आ जाती है ऐसी देश के लिए भक्ति - ऐसा साहस!

क्यों उन्हें ऐसा सोंचते हुए अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों और उनके प्रति लगाव, उन्हें देश के लिए जाने से रोक नहीं पाते? - जैसा की हम सबके के साथ होता है। हम जैसे लोग तो थोड़ा सा अपनी उलझनों के बाहर झाँक तक नहीं पाते और ना ही हमे याद भी रह पाता है की जिस खुली हवा में हम और "हमारा परिवार" इतने आराम से सांस ले रहा है, जिसकी उसने कीमत भी नहीं चुकाई - पर जिन्होंने पूरे देश के बदले अपनी और अपने परिवारों का बलिदान देकर यह भरी कीमत चुकाई है, उनका स्मरण भी कर के उन्हें प्रणाम मात्र कर कुछ तो कृतज्ञता का भाव मात्र ही महसूस कर लें।   


तो ये जूनूनीयत है! ये, कहां पायी जाती है? मतलब अगर अपने बच्चों में डलवानी हो तो कहां मिलेगी? क्यूंकि मेरा तो कलेजा ही उचाट हो जाता है जब में अपने आजु-बाजू पसरी हुई मनहूसियत देखती हूं। मैंने बचपन से 15 अगस्त को दिवाली - होली जैसा ही मनते देखा है। जब स्कूल में थे तब कई देश से जुडी प्रतियोगिताओं का हिस्सा होती, पूरे मन से सभी तैयारियां करती -कराती। बड़ा ही मज़ा भी आता था। कई बार प्राइज भी जीते। जब घर आते, तो दादा जी जलेबी समोसे कचोरी लाते थे। वे हमे अपने गांव के बारे में बताते की वहां गांव में वे सब जलेबी बाँट कर यह स्वतंत्रता दिवस मनाया करते थे। पूरा परिवार साथ में TV पर चल रहे देश की आज़ादी के गाने देखते -सुनते और बातें करते उस मीठे नाश्ते का आनंद लेता। कई गानों पे सबकी आँखें नम हो जाती। हम बच्चे अपने दादा - पिता की गीली - डबडबाई ऑंखें देख कर भाव से भर जाते। फिर कोई जोशीला गाना बजने लगता तब फिर जोश से भर जाते। सिनेमा जब देश का प्यार और उस पर वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के बारे में दर्शाता है तो सार्थक लगता है।   

प्रभु का धनयवाद है की कुछ चुनिंदा अब भी हैं जिन्हे भारत माता, अखंड भारत, स्वदेश, भारतवर्ष आदि सब out of fashion नहीं लगता, ना ही इन्हे हिचकिचाहट होती है तिरंगा फहराने में या अपने व्यक्तित्व या प्रस्तुति का हिस्सा बनाने में।  हैं कुछ लोग जो इस बहस में पड़ना नही चाहते की अगर मैंने झंडा नहीं लहराया या अपने #dp पे नहीं लगाया तो क्या हुआ - (वैसे ये वो लोग भी हैं जो otherwise अपने परिवार से जुडी चीजों या घटनाओं को ज़रूर साझा करते हैं अपने "social " मीडिया पर, खैर -- स्वतंत्रता है ना भाई   


यार देखिये, जो आपके दिल को ख़ुशी दे वो सब कीजिये। करना भी चाहिए - ये तो अच्छी ही बात है। जैसे आप जो कुछ करते हैं  वो सब आप दूसरों से साझा भी करना चाहते हैं ताकि आप और खुश महसूस कर सकें वैसे ही अगर हम सब कभी कभी भारतीय दोस्तों का, भाई - बहनों का हौसला बढ़ाते रहेंगे सिर्फ एक वाक्य से जो देशप्रेम का भाव जगाती है तो मदद मिलती है देश के प्रति जज्बे को कायम रखने में, प्रोत्साहन मिलता है देशवासियों को एकजुट रहने में। और आज के समय को देख कर नहीं लगता की जिस देश में अखंडता है, लोगों में बिखराव है वह देश खतरे में हैं. साथियों जिस दिन देश खतरे में  है तब हालात सोंच से परे विध्वंसक हो जाते हैं। ऐसे देश में महिलाओं और बच्चों की खास दुर्गति होती है। 

इसलिए, जब जब मौका बने या आप ही मौका बनाये तब हर विभिन्नता के बावजूद एकता - एकजुटता के भाव को सब से पहले त्यौहार जैसे मनाइये। ऐसा करने से देश और देश को बनाये रखने वाले भावना और गाढ़ी होती जाती है। 

                                         

ना भूलें की 

"जब तक देश है - हम हैं "

- यही मंत्र है। 

जय हिन्द 

जय भारत 




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