पहाड़ों की बाँहों में मज़े – नेटारहाट में छुट्टियां, Day 2!

नेटारहाट में दिलचस्प दूसरा दिन   



सुबह 5:00 बजे का अलार्म को झट से बंद कर के हम आधे घंटे बाद उठे। जैसे ही मैंने खिड़की से बाहर झांका तो देखा सामने पेड़ धुंध की चादर ओढ़े सुस्ताए खड़े थे। सब एकदम सफ़ेद! इधर मेरे माही कम्बल में मस्त गोल होकर ऊंघ रहे थे। मैंने उन पर से कम्बल खींची और तैयार होने लगी। 20 मिनट में हम दोनों अपना सामान लेकर लोध फॉल्स की यात्रा पर निकल गए। इसके लिए घाटी में वापस उतरना होता है और गेट पर आकर दाई ओर से रास्ता जाता है। सुबह के 6:30 बजे इस रस्ते से होकर जाना ऐसा लगा जैसे ये वादियां शायद जादुई दुनियां में ले जा रही हों। हर तरफ गाढ़ी धुंध। जैसे जैसे गाडी आगे बढ़ रही थी, बस उतना भर ही दिख पा रहा था। आधे घंटे का ये परियों वाला रास्ता अच्छा अनुभव दे गया। फिर जैसे जैसे समय बढ़ रहा था मौसम साफ़ होता चला गया और फिर प्रकट हुए बेहद खूबसूरत जंगल। और उनके गोद में बने छोटे छोटे गांव और स्कूल। नेतरहाट से लोध जलप्रपात का 65 किलोमीटर का ये सफर बेहद सुहाना है। क्यूंकि इस पूरे रास्ते में जहां तहां मैगी पॉइंट नहीं पहुंचे इसलिए यहां का भोलापन (बचा) बना हुआ है। और यात्रा करते हुए भीतर होती आत्मानुभूति के लिए ये अच्छा है।      

लोध फॉल्स: पानी की गर्जना



बिना किसी ब्रेक के, प्रकृति को घूंट घूंट पीते हुए हम गरूड़ पे सवार लोढ़ फाल्स के प्रवेश द्वार पे पहुंच गए। वहीं बाजु में बने एक दुकान जिसमे खाने की व्यवस्था मिलती, दिखी। जोड़ा अभी दुकान की साफ़ सफाई में ही लगा था। पूछने पर बताया यहां दूद वाली चाय बमुश्किल ही मिलती ही। लाल चाय (नीबू वाली) पीनी है तो बोलो। खाने के कम विकल्प मिलने की वजह से मैंने बीती शाम नेतरहाट से ही कुछ स्नैक पैक कर लिए थे जो इस सुबह हमारे काम आये। लोध फॉल्स के खुलने का समय 8 बजे का है और 8: 20 तक यह खोल दिया गया।   

वहां से 10 रूपये प्रति व्यक्ति का टिकट लेकर अपनी गाडी से इसके दुसरे गेट पर पहुंचते हैं 5-8 मिनट में। ये रास्ता जंगल के भीतर से होकर ही जाता है और फिर मिलता है आपको दूसरा गेट जहां आपके प्लास्टिक के सामानों के टिकट लगते हैं, जो आपको रिफंड होजाता है अगर आप वापसी में वो सामान दिखा दें तो। फर वहां से 20 मिनट धीरे धीरे सीढ़ियां चढ़ के आपको दीदार होते हैं झारखड के मशहूर Lodh Falls के। 

अब बात करते हैं इस नयनाभिराम वॉटरफॉल की। यह झारखंड का सबसे ऊँचा झरना है जिसकी ऊँचाई करीब 143 मीटर है। इस ऊंचाई से गिरता पानी और उसकी गड़गड़ाहट जबरदस्त थी। मुखतः दो बड़े फॉल्स हैं। एक पूरा नज़र आता है और दूसरा चट्टान और पेड़ों के झुरमुठ में आधा ही दिखता है। अगर आप खुशकिस्मत हैं यानी की बारिशों के मौसम में आए हैं तब तो इस जलप्रपात का अनुभव आपको रोमांच में भिगो देगा। झारखण्ड सरकार में इस जलप्रपात पे इधर से उधर जाकर इसके वेग में भीगने के लिए लकड़ी का पुल बनाया है। यह अच्छा प्रयास है। प्रकृति प्रेमियों को उनकी प्यास दुरुस्त करने देने की अच्छी कोशिश। 

सुग्गाबंध फॉल्स: पानी के खेल और फिसलन के किस्से

                              
                               

Suggabandh Falls हमारी यात्रा का अंत करने के लिए एकदम सही जगहें थीं। यहाँ बैठ कर वादी का आनंद लेने के लिए लकड़ी का कुछ झोपड़ीनुमा बनाया हुआ है। देखने और बैठने और बैठ कर के देखने दोनों ही तरह से अच्छा प्रयास है यह भी सरकार का। यहाँ भी लकड़ी के पुल हैं। जहां एक पे खड़े होकर नीचे से फिसलते झरने को देखते हुए दोनों तरफ बिछी हरी खूबसूरती को सरहा सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ एकऔर पुल से नीचे उतरकर बहते झरने के ठीक सामने खड़े होकर झरने की छींटों में भीग सकते हो और इंस्टाग्राम के लिए अनेकों फोटोज इकट्ठी कर सकते हो। सब कुछ फोटोजेनिक है। 

नीचे उतरने के लिए हमे थोड़ी सी ट्रेकिंग करनी पड़ी पत्थरों पे। और ये कोई मुश्किल काम नहीं था। 12 बजे की तेज़ धुप ज़रूर परेशां कर रही थी बाकि झरने का परफॉरमेंस हमे उत्सुक कर रहा था।  



कुछ अन्य डेस्टिनेशंस जो हमारी दो दिन की यात्रा में नहीं हो पाए पर अगर आपके पास समय का अच्छा बजट है तो इन से भी मिलकर आइयेगा। 

  • मिरचैया फॉल्स - ये आपको सुग्गाबांध से आगे मिलेगा 
  • बेतला नेशनल पार्क: इससे भी आपकी मुलाकात सुग्गाबांध से आगे होगी 
  • सनराइज पॉइंट: ये नेतरहाट में है 
  • नैना फॉल्स: इसका एंट्री गेट आपको मैगनोलिया सनसेट पॉइंट से लौटते वक़्त राइट में मिलेगा, फिर वहां से 7 किलोमीटर्स आपको कच्चे रास्तों पे गाडी से जाना होगा। यहाँ पर्यटक छोड़िये हम दोनों के अल्वा हमे कोई नहीं मिला और शाम का अँधेरा गहराते जाने की वजह से हम 3 किलोमीटर अंदर उतरने के बाद वापस लौट आये। सुरक्षा का भाव होना ज़रूरी है यार।   


यात्रा का अंत: ढेर सारी यादें और ठहाके

नेतरहाट की यह यात्रा हमारे लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, यह हमारी दोस्ती, मस्ती और रोमांच का एक खूबसूरत सफर था। झरनों से लेकर जंगल तक, हर जगह ने हमें हंसाया, डराया और अंत में सुकून दिया। तो अगली बार जब आप भी नेतरहाट जाएं, तो बस खुद को आज़ाद छोड़ें और प्रकृति के साथ मस्ती का मजा लें।


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