हमे यह याद ही नही की हम कब अपने साथ बैठे थे !

खुद से मिलने के आसान तरीके 

तो चलिए अपने दिल और दिमाग सीट बेल्ट बांध लें! और पढ़ें 


हाँ , ज़रूरी है और ज़रुरत भी है खुद के साथ समय गुजारने की। पर क्यों? क्यों की कई ऐसी बातें हैं जो आपके भीतर रहने वाला आपका मन, आपके साथ साझा करना चाहता है। हैं कुछ ऐसे मुद्दे जिनपर बातचीत करने की परम आवश्यकता है। रोज़ उठना, तयारी करना, काम पर चल देना, दिन पूरा करना, वापस आना, थोड़ा सुस्ताना और फिर झट से नींद - ये सिलसिला रिपीट मोड पर चलता है। ऐसी बेचरगी थोड़ी जीने आए थे यार। भाई जीवन है - हमे मिला है , पर ज़रूर इस तरह जीने को तो नहीं मिला है।  

हैं, ज़रूरी है सब - रिश्ते - नाते सब! उनके प्रति ज़िम्मेदारी भी। माना की ज़रूरी है ये सब, पर खुद भी हम ज़रूरी हैं। यूँ ही कभी कभी रुक जाना और खुद को थोड़ी दूर से देखना - पास से द्रिष्टि का दायरा काफी छोटा हो जाता है। दूर से जब हम खुद पर नज़र डालते हैं तब कुछ कुछ करके कई चीज़ें दिखती हैं।  

"हमे यह याद ही नहीं कि हम कब अपने साथ बैठे थे!"—यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आज हममें से कई लोग फंसे हुए हैं। इस ब्लॉग में, हम उस खोए हुए वक्त की तलाश करेंगे जो हम खुद के लिए निकाल सकते थे। वो पल, जब हमें खुद को समझने, सुनने, और प्यार करने का मौका मिल सकता था। अकेले समय बिताना एक तरह से खुद के साथ डेट पर जाने जैसा है, जिसमें ना कोई फूलों का खर्चा, ना कोई डिनर बिल। तो आइए, एक बार फिर खुद से मिलने की कोशिश करें और जानें कि हमारे अपने साथ बैठने की अहमियत क्या है।

अगर रोज करना मुश्किल लगे तो कभी किसी छुट्टी के दिन तड़के सुबह मतलब एकदम भोर में उठ कर ध्यान करने की कोशिश की जा सकती है। शुरुआत हफ्ते में एक दिन से करना आसान है। इस समय आप अपने साथ पूरे इत्मीनान से बैठ कर कुछ गहरी बातें भी कर सकते हैं। यह स्वयं से शांत वार्ता समस्त देह को भीतर और बाहर से सहज कर देगी। 


बातें कई तरह की होती हैं, अनेक विचार हमारे में में विचरण करते रहते हैं, भाव बहते रहते हैं। मेरे साथ यह बचपन से ही होने लगा था, जब कोई यह सब सुनने सुनाने को मिला नहीं तब अनायास ही मैंने उन्हें लिखना प्रारंभ कर दिया। फिर जैसे मुझे अपने साथ इस तरह लिखने की माध्यम से बातें करना भाने लगा। वाकई जर्नलिंग अच्छा साथी है। 


प्रभु द्वारा बनाई गई इस खूबसूरत पृथ्वी पे बसाई गई मोहनी प्रकृति की सोहबत बेहद हसीं मुलाकात है। ये ठीक ऐसे ही है जैसे अपने प्रेमी का साथ होना। घने जंगल, ऊंचे हरे या बर्फ के पर्वत, गहरी कल-कल करती नदिया, इठला के बलखा के बहते झरने और यही गीत सुनते पक्षी - आह! क्या सोहबत है। बस अपने दुश्मन (फोन) को घर पर छोड़ के टहलने जाएं। 

एक बेहद आसान और उतनी ही मामूली जान पड़ने वाली क्रिया - गहरी सांस लेना- कितनीकमाल की हो सकती है! गहरी लम्बी सांस तुरंत मन को सहज और शीतल बनाने में सक्षम है। और अच्छी बात यह है की इसे कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है। एकदम सरल अभ्यास है। 


डेट पे जाएं कितबा के साथ। एक किताब लें- ऐसी किताब जो आपके मन को भाये। बड़ी प्यारी होती हैं ये- आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं वो भी बिना किसी खर्चे के! आप कहीं भी बैठ कर बिना कोई भी छुट्टी लिए कहीं पर भी जा सकते हैं एक अच्छी कितबा को पढ़ कर।

हफ्ते में या पंद्रह दिन में अपने गैजेट्स को छुट्टी दे दें और अन्य उपकरणों को भी बंद कर दें। थोड़ा पहले की समय में जाएँ। आप पाएंगे की ये सभी उपकरण जो जिंदगी आरामदेह बनाने के लिए हमने कमाकर जुटाई थी वही सब हटाकर जीवन हल्का और सहज हो गया है। हमे अपने साथ बैठने का अच्छा वक़्त भी मिल रहा है और यह सब बेहद सुकूनदेह है। 

दिन में एक बार किया जा सकने वाला काम - बस एक शांत कमरे में बैठना और अपने विचारों का अवलोकन करना। शांत में बैठना गजब तरीके से थकान ही उतार देता है। दनभर के कई उलझे सवालों के जवाब भी दे देता है। मन की वजह से कहीं अगर व्यर्थ में भटक रहा हो, उसे भी शांत करता है। विचारों का अवलोकन खुद से बातें करने का अच्छा माध्यम है। 


जब क्या, कैसे और कब करना है- परेशान कर रहा हो। या कोई समस्या चैन ना लेने दे तब नहा लेना एक बेहतरीन उपाय है। अपने लिए आरामदायक स्नान की व्यवस्था करें, जहां किसी प्रकार का कोई व्यवधान ना हो। खुश्बुएं हो, हल्का संगीत और लम्बा आरामदायक स्नान। यह केवल सफाई का कारण नहीं है। जब पानी हमारे शरीर पर पड़ता है तो जैसे देह की तासीर बदल जाती है। यह क्रिया थेरेपी जैसी ही है। यह आराम को आकर्षित करती है। 


ट्रेवल करने का तो आजकल बड़ा ही ज़बरदस्त क्रेज है। और "सोशल मीडिया" ने सबके पीछे रॉकेट छोड़ रखा है अच्छी जगहों पे जाकर बेहतरीन फोटो लेकर उसे अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पे पोस्ट करने का। इस से सैर सपाटा कितना हो रहा है पता नहीं लेकिन तनाव ज़रूर बढ़ रहा है। इस से बात नहीं बनेगी। अगर यात्रा करनी है तो सोशल मीडिया की स्पर्धा से निकल कर करनी होगी। और अगर किसी नयी जगह पे जायेंगे अकेले तो मज़े भी बहोत आएंगे। कोई टीका टिपण्णी करने वाला होगा। मन का कर पाएंगे, मन से कर पाएंगे। अपने साथ बिताए खुश लम्हे अच्छा सुकून देंगे।  


रात के आसमान के नीचे समय बिताना भी बड़ा सुकून देता है। अपनी छत पर (छत ना है तो बालकनी ही सही) लेट जाएँ अब आप और आपके सामने ब्रह्मांड का एक चेहरा। सितारों से बातें की है कभी ? मैंने की है। यह अलग और अपनी ही तरह का अच्छा एहसास है। 


खाना बनाने को आजकल थेराप्यूटिक यानी की चिकित्सकीय कहा जाने लगा है। वो इसलिए क्यूंकि खाना बनाना अपने आप में ध्यान करने जैसा है। एक निश्चित समय के लिए हम एक छोटा सा प्रोजेक्ट पूरा कर रहे होते हैं ऐसी सुगन्धित और ज़ायकेदार चीज़ों के साथ जो हमारे अंतर्मन को भी प्रभावित करती है। इसे कई लोग संगीत सुनते हुए बनाना पसंद करते हैं। आप भी अपना तरीका खोजिये और खुद के लिए भोजन पकाएं, बिना किसी बाधा के प्रक्रिया का आनंद लें।


भोजन बनाने की बात करने के बाद अति है भोजन करने की बात। जी हाँ, अगर किसी वजह से अकेले भोजन करना पड़े तो इस बात का बुरा ना लगाएं। बल्कि बड़े आराम से अपने पसंद की चीज़ें बनाकर उसे पूरा आराम से अपने सामने सजा कर। अपने ज़ायके का पूरा पूरा ध्यान रखकर, बड़े आनंद से उसका मज़ा लें। हर कौर को मन लगाकर खाएं, उसके रस का भरपूर आनंद लेने दें मुँह के साथ साथ भीतर के मन को भी। स्वाद किस प्रकार का है, पिछली बार जो कमी रह गई थी वो इस बार सुधार हुई की नहीं, इस पर ध्यान दें। माइंडफूल ईटिंग।     


संगीत बड़ा ही प्यारा साथी है। और  इस बात से आप ज़रूर सहमत होंगे। जब आप घर में अकेले रहते हों तो अपने मोबाइल या रेडियो पे गाने लगा लें। आपका अपने साथ मन लगने लगेगा। अपने काम भी पूरे करते जाइये।  अकेलेपन का एहसास खत्म हो जाता है। बिना किसी काम के भी शांत संगीत सुन कर देखें, अच्छा लगेगा। अपने हाथ की बानी गरमा गर्म कॉफ़ी या चाय लीजिये और खिड़की के पास बैठ जाइये। अब चुस्कियों के साथ आपका पसंदीदा गाना आपके मन की अंगुली पकड़कर आपको थकान की जमीं से ताजगी की वादियों में तुरंत पंहुचा देगा।   



मोबाइल और वीडियो कॉल के ज़माने में मैं अगर चिट्ठियां लिखने को कहूंगी तो हो सकता है आपको अटपटा लगे पर पत्र लिखना एक सहज और सुंदर माध्यम हो सकता है अपने साथ बैठने का। पुराना पर प्यारा तरीका अपने ख्यालों, विचारों और ज़ज़्बातों को शब्दों में पिरोकर और कागज़ पे सजाकर अपनों को भेजना। चिट्ठी अपने आप को भी लिखी जा सकती है जिसे हम कुछ वर्षों बाद जब पढ़ें तो बीते समय से फिर से रूबरू होने का मौका मिले। और आजकल के टेक्नोलॉजी वाले ज़माने में हैं कुछ मेरे जैसे लोग जो अचानक किसी ख़ास की भेजी हुई चिट्ठी पाकर बेहद खुश हो जाएंगे। इस मुलाकात में कागज़ की छुअन जो है। 

  
प्रार्थना करना या मैं समझती हूँ प्रभु से बातें करने का एक सहज माध्यम। जब हम हमारे इष्टदेव से हमारे मन की बात कह रहे होते हैं तब अपनी बाकि तुच्छ चिंताओं को अलग रखकर अपने प्रभु से अपने मन की बातें, अपने सुख -दुःख और अपने योजनाओं के बारे में बताते हैं। कुछ इस तरह भी तो हम खुद के साथ कुछ वक़्त तो बिताते हैं। 



कहते हैं व्यायाम और कसरत जैसी चीज़ें शरीर में एक ऐसे रसायन का स्राव करती हैं जिससे मन खुश हो जाता है।आमतौर पर इसे हैप्पी हॉर्मोन भी कहते हैं। अपनी सेहत पर काम करने से बेहतर सुकून कहां मिलेगा भला? इस अभ्यास को करने के लिए एक दुश्मन से जीतना होगा - आलस। अगर इस पर जीत पा ली तो फिर कसरत और योग का नशा सा लग जाता है। वो इसलिए क्यूंकि चुस्त-दंदरुस्त शरीर हमे खुशनुमा रखता है।जैसे आलास से अवसाद घेरता है। 



अपने घर के बगीचे में कुछ समय ठहरें। पेड़ की टहनियों को सहलाएं, फूल - पत्तियों को स्पर्श करें, उनकी सुगंध लेते हुए उनके कानों में बसंत गुनगुनाएं। फिर देखिएगा, एक छोटी सी गौरैया जो अक्सर आपके बगीचे में फुदकती रहती है, धीरे -धीरे उस से आपकी दोस्ती हो जाएगी।फिर आप उसका इंतज़ार किया करेंगे और वो आपका। प्रकृति आपको अपने ही जीवन के अनछुए पहलुओं से  रूबरू कराती है। 

चित्रकारी, पेंटिंग या नृत्य, कोई इस तरह का शौक भी मन को सरल कर कला के प्रति प्यार कराता है। और हम उस समय के लिए सब कुछ एक तरफ कर अपनी रूचि को समर्पित हैं।  

आधुनिक तकनीक से बनी गाड़ियों के ज़माने में अगर मैं कहूं की कभी किसी दिन यूं ही पैदल घर से निकल पढ़िए, किसी निश्चित जगह जाने के लिए नहीं बल्कि के आसपास को देखने के लिए। गौर से निहारेंगे तो पाएंगे की कहीं किसी गली में नया घर बना है। कहीं रोड के किनारे फूल पौधे लगाए हैं। नुक्कड़ पे जो एक पौधा देखा था उसका कद काफी ऊंचा होगया है। यूँ ही कभी अकेले घर से निकल पड़ना, किसी मोड़ पे किसी न किसी से मिला।  किसी अनजान के चेहरे में अपनत्व की मुस्कराहट भी दिखा देता है।  


भई, हाइकिंग तो वो जादूई छड़ी है जो आपको बेड से उठाकर पहाड़ों की गोद में ले जाती है। सुबह-सुबह जब दुनिया सो रही होती है, आप पहाड़ों की पगडंडियों पर खुद को सुपरहीरो महसूस करते हैं। हाइकिंग का मज़ा ही अलग है - एक तरफ़ सेहत को मिलेगा फ़ायदा और दूसरी तरफ़ वो सेल्फी पॉइंट्स जो आपके सोशल मीडिया को चार चाँद लगा देंगे। और हां, हर कदम के साथ फ्री में मिलता है ताज़ी हवा और नए दोस्त। सोच क्या रहे हो, बैग पैक करो और चल पड़ो! आखिरकार, लाइफ में थोड़ा एडवेंचर तो बनता है, है कि नहीं?


बुनाई या हस्तशिल्प की अहमियत कुछ ऐसी है जैसे चाय में चीनी, बिना इसके ज़िन्दगी का मज़ा थोड़ा फीका लगता है। सोचिए, अगर हमारी दादी-नानी ने हमें अपने हाथों से बुने स्वेटर न दिए होते, तो सर्दियों का मज़ा ही क्या रहता?ये हस्तशिल्प न सिर्फ हमारी पुरानी यादों को ताज़ा रखते हैं, बल्कि हमें अपने कल्चर और परंपराओं से भी जोड़े रखते हैं। बुनाई करना तो जैसे ध्यान का नया रूप हो गया है – एक-एक धागा डालते जाओ और अपने सारे टेंशन को बाहर निकालते जाओ। और हां, ये भी एक ऐसी कला है जिसमें आप बिना बोले भी बहुत कुछ कह सकते हो – "देखो, मैंने तुम्हारे लिए अपने हाथों से ये खास बुना है।" और सबसे मजेदार बात ये है कि बुनाई करते-करते आपकी creativity भी खिल उठती है। एक साधारण धागा जब आपके हाथों में आता है, तो वो कैसे एक खूबसूरत शॉल, स्वेटर या चादर में बदल जाता है, ये देखकर खुद पर गर्व होना स्वाभाविक है। तो बुनाई या हस्तशिल्प सिर्फ एक कला नहीं, ये एक पूरा अनुभव है। और अगर आप इसे अब तक ट्राई नहीं किया है, तो बस सोचिए कि आप एक पूरा जादुई अनुभव मिस कर रहे हैं।


जब सर्दियों के महीने में किसी ठिठुरती रात में अकेले में अलाव के पास बैठने की बात ही कुछ और है! जब आप अलाव के पास अकेले बैठते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे आप किसी जादुई दुनिया में पहुँच गए हों। वो आग की लपटें, जो कभी-कभी नीले, कभी-कभी लाल रंग में बदलती हैं, आपकी कल्पनाओं को हवा देती हैं। अकेले में अलाव के पास बैठना ऐसा है जैसे आप अपनी ही कंपनी में पार्टी कर रहे हों। वहाँ न कोई शोरगुल होता है, न ही कोई डिस्टर्बेंस। सिर्फ आप और वो जलती हुई लकड़ियों की आवाज़। वो आवाज़ आपके दिल के तारों को छेड़ देती है और आपको अपने ही ख्यालों में खो जाने का मौका मिलता है।

सोचिए, आप हैं, समुद्र की लहरें हैं, और रेत के साथ आपका खास रिश्ता! ये वो समय है जब आप खुद से बातचीत कर सकते हैं, वो भी बिना किसी की टोकाटाकी के। फिर वो बात करें सूरज की किरणों की, जो धीरे-धीरे आपकी त्वचा को सुनहरा बनाती हैं। ये वही पल है जब आप अपने अंदर के 'सूर्य देवता' को महसूस करते हैं। और अगर आप धूप से भागने वालों में से हैं, तो हां, सनस्क्रीन लगाना न भूलें!

अकेले पिकनिक पर समय बिताना एक अद्भुत अनुभव हो सकता है। सोचिए, आप एक हरे-भरे पार्क में हैं, आसमान नीला है, सूरज चमक रहा है, और आपके पास ढेर सारी चटपटी चीज़ें खाने को हैं। कोई 'बोरिंग' दोस्त नहीं जो आपको बार-बार पूछे, "अब क्या करें?" या फिर कोई ऐसा इंसान नहीं जो आपके खाने में से हिस्सेदारी लेने की कोशिश करे। आप पूरी तरह से आज़ाद हैं, बिना किसी की परवाह किए। ये वो वक्त होता है जब आप अपने विचारों को समेट सकते हैं, खुद को बेहतर समझ सकते हैं और अपने दिमाग को तरोताजा कर सकते हैं। अकेले पिकनिक पर जाने का एक और फायदा ये है कि आपको नए विचार और आइडियाज मिल सकते हैं, क्योंकि आपका ध्यान बंटाने वाला कोई नहीं होता। तो, अगर आपने अभी तक अकेले पिकनिक पर जाना ट्राई नहीं किया है, तो अगली बार अपने साथ एक चटाई, कुछ पसंदीदा स्नैक्स और एक अच्छी किताब लेकर निकल जाइए। यकीन मानिए, ये अनुभव आपको खुद के और भी करीब ले जाएगा, और आप खुद को एक नए अंदाज़ में पाएंगे। 

प्रकृति की ध्वनियाँ सुनना एक कला है- चेतना है। चाहे वो पक्षियों की चहचहाहट हो या पत्तों की सरसराहट। नदी की कलकल हो या बारिश की बूँदों की टपटप। हवा की सनसनाहट, समुद्र की लहरों की गर्जना, बादलों की गर्जना, झरने की छलकती धारा, झींगुरों की झंकार, सब मनमोहक है।  

आभार का अभ्यास, यानि कि gratitude practice, जीवन में जादू से कम नहीं है! सोचिए, जब हम किसी को धन्यवाद कहते हैं, तो सिर्फ उनकी दिन को बेहतर नहीं बनाते, बल्कि खुद भी खुशियों की बारिश में भीग जाते हैं। यह मानो एक छोटा सा हॉट चॉकलेट हो, जो दिल को गर्म कर दे! आभार से हम छोटी-छोटी चीज़ों को महत्व देना सीखते हैं, जैसे कि वो चाय जो सुबह-सुबह माँ ने बनाई या वो हंसते हुए दोस्त जो कठिन समय में साथ खड़ा होता है। जब हम आभार का अभ्यास करते हैं, तो हम अपने दिमाग को सकारात्मक सोच की आदत डालते हैं, और यह सोच, हमारे जीवन में खुशियाँ और ताजगी लेकर आती है। तो चलिए, हर दिन आभार का एक प्यारा सा छोटा टुकड़ा खाएं और देखिए, कैसे जीवन का स्वाद और भी मीठा हो जाता है!

अव्यवस्था हटाना मतलब ‘खिचड़ी’ को सुसज्जित करना! सोचिए, घर में अगर हर चीज़ एक जगह पर न हो, तो कैसे लगेगा? जैसे आपके जादू के खिलौने, किताबें, और वो गुम हुई चाबी सब मिलकर एक गहरे रहस्यमय ड्रामा का हिस्सा बन जाती हैं! लेकिन जब अव्यवस्था हटती है, तो सब कुछ ‘गोल्डन’ हो जाता है। कचरे के ढेर को साफ कर, ज़िंदगी की फटी हुई तस्वीर को ठीक कर, और चश्मे को उसके सही जगह पर रख कर आप अपनी दिनचर्या को स्वच्छता और ताजगी का तोहफा देते हैं। यह न केवल आपके मन को शांति देता है, बल्कि काम करने के लिए भी प्रेरित करता है। साफ-सुथरे घर में ऊर्जा भी साफ होती है। तो चलिए, अव्यवस्था हटाते हैं और एक नई शुरुआत करते हैं!

माइंड मैपिंग, वो जादूई टूल है जो आपकी सोच को निखारने में मदद करता है! 🤯 ये ऐसा है जैसे आपके दिमाग का एक सुपरहीरो हो, जो सारे आइडियाज को एक पिन में बदल देता है। सोचिए, जब आप एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे होते हैं और सब कुछ एकसाथ सोचते हैं, तो कितना उलझन भरा हो सकता है। माइंड मैपिंग आपकी सोच को ‘मल्टी-टास्किंग’ मोड में डाल देती है। आप एक पेड़ की तरह अपने विचारों को शाखाओं में बांट सकते हैं। हर शाखा पर नए-नए विचार और आइडियाज की पत्तियाँ उग सकती हैं। इससे न सिर्फ आपकी सोच साफ होती है, बल्कि आपको टास्क्स को व्यवस्थित करने में भी मदद मिलती है। तो अगली बार जब दिमागी चक्क्रव्यूह में फंसें, माइंड मैपिंग को आजमाएँ! 🌟🧠

यार, सोचो एक बार! जब तुम अपने सपनों को आंखों के सामने लाते हो, तो वो कैसे हो सकता है?  जैसे अपने फेवरेट बॉलीवुड स्टार की तरह, अपने लक्ष्य के एक्शन में आना! दृश्य अभ्यास का मतलब है, शांत और सुकून भरे माहौल में बैठकर अपने सपनों को साफ-साफ देखना। जैसे तुम्हारा खुद का फिल्मी सीन हो। इसके फायदे भी कितने हैं! ये हमें अपने लक्ष्यों के प्रति स्पष्टता देता है, और हमारा मोटिवेशन दोगुना कर देता है। जैसे कोई सुपरहीरो अपनी शक्ति को समझ कर खुद को तैयार करता है। तो अगली बार जब तुम अपने सपनों को देखो, तो उसे दिल से महसूस करो और सोचो कि तुम कितने करीब हो अपने गोल्स के! 🚀💫

सूर्योदय देखना वो पल है जब आपकी आँखें नई उम्मीदों से चमक उठती हैं, और सूर्यास्त वो समय है जब आप अपने दिन की सारी थकान और स्ट्रेस को सूरज के साथ विदा कर देते हैं। अकेले में इन पल्स को देखना मतलब, अपनी आत्मा से एक प्यारी सी गपशप करना। कोई शोरगुल नहीं, बस आप और प्राकृतिक सौंदर्य का ये अद्भुत संगम। तो अगली बार जब आप अकेले हों, सूरज की राह देखना मत भूलिए—क्योंकि सूरज की ये विशेष सौगात आपको हर बार हैरान कर देगी! 🌅✨

कैफे में अकेले जाना। वाह, इसका तो जवाब ही नहीं! सोचिए, कैफे में अकेले बैठना मतलब आप अपनी दुनिया के राजा हैं। जब आप अकेले होते हैं, तो एक कप चाय या कॉफी के साथ खुद से गप्पें मारना मजेदार हो जाता है। यहाँ न कोई ध्यान देने वाला होता है, न किसी के साथ की चिंता। बस आप, आपकी पसंदीदा म्यूजिक और वो शानदार कप! अकेले बैठने का मतलब है कि आप खुद के साथ क्वालिटी टाइम बिता रहे हैं। यही वो पल होते हैं जब आप बिना किसी शोर-शराबे के अपने विचारों में खो जाते हैं और खुद को बेहतर समझते हैं। तो अगली बार जब आप कैफे में अकेले बैठें, तो बस महसूस करें उस पल का मजा, और जानें कि अकेलापन भी कितना शानदार हो सकता है!

ये अभ्यास आपको खुद से गहरा संबंध बनाने, सचेतता को बढ़ाने, और आंतरिक शांति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। चाहे आपके पास कुछ मिनट हों या कुछ घंटे, अपनी दैनिक जीवन में अकेलेपन को अपनाने का हमेशा एक अवसर होता है। 

तो, अब हमे याद आया कि हम कब अपने साथ बैठे थे? ओह, क्या कहें! शायद हम उस समय के खूबसूरत जादू में खोए थे कि हमारी खुद की संगत हमें कहीं खो सी गई थी। जब आत्म-खोज का सफर शुरू होता है, तो समय की घंटियाँ भी बजनी बंद हो जाती हैं। खुद से बिताए गए हर पल में सुकून और हंसी का खजाना छिपा होता है। तो अगली बार जब आप खुद से मिलने जाएं, याद रखिए—आपके साथ बैठने का मतलब सिर्फ सुकून नहीं, बल्कि एक शानदार भावनात्मक और साहसिक यात्रा भी है! 

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