भारत ‘रतन’ ‘टाटा’

रतन टाटा - बिजनेस जगत का विनम्र सितारा

पर्दा गिरने क बाद भी तालियां बज रही है, समां भावुक है,

लगता है कोई ज़िन्दगी का किरदार कमाल का निभा के चला गया

Ratan tata


कल सुबह जब आंखे खुली और मोबाईल लिया की माँ - पिता जी और माही को राधे-राधे कर दूं (हम तीनों क्यूंकी तीन जगह रहते हैं तो हमारा यह तरीका है की नए दिन मे हम एक दूसरे के जीवन मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं) देखती हूं की हमारे प्रिय रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। उस वक्त जैसे सब थम गया, मैं उठ बैठी, मोबाईल मे सोशल मीडिया चलाया तो सब जगह पद्म विभूषण रतन टाटा के चले जाने की खबरें! पाँच सेकंड पहले जो दिल ढक्क से रह गया था, अब बैठ चुका था, मैं उन तस्वीरों को देखते हुए धीरे धीरे रो रही थी जो इस बात को पक्की कर रही थी की जिस स्नेही उद्योगपति रतन टाटा का नाम हर देशवासी बड़े सम्मान से लेता है उन्होंने 86 साल की उम्र में बुधवार देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली।


पिछले दो दिनों से उनके बारे मे देखने- सुनने-पढ़ने मे पता चला की मेरी ही तरह बहुत से लोगों को इस घटना से आघात पहुंचा है, सभी को लगता है जैसे हमारे घर से ही कोई खास, अज़ीज़ चला गया हो। दुनिया बेहद भावुक है यार। जादू किया था जैसे हम सब पे सहृदय रतन टाटा ने। और वो शांतनु नायडू, उसका क्या हाल होगा जब हम जिसे उनके साथ समय बिताना तो दूर, उनसे एक लम्हा मिलने को नसीब नहीं हो पाया, हमारे आँसू नहीं थम रहे। 


31 वर्षी नायडू, टाटा ग्रुप मे सबसे युवा मैनेजर हैं और पिछले कुछ समय से रतन टाटा के बेहद करीब रहे हैं। शांतनु रतन टाटा को दोस्त बुलाते हैं। दोस्त को खो देना, और वो भी तब जब दोस्त बेहद-2 खास व्यक्तित्व हो। उसके मीठे से मन पे क्या वज्र गिरा होगा! प्रभु उसके सीने के भारीपन को जल्दीहल्का करे।


यूं तो करिश्माई व्यक्तित्व के स्वामी रतन टाटा को इस दुनिया में सभी जानते हैं, पर पिछले दो दिनों से मैं सिर्फ प्रभावशाली रतन टाटा के बारे मे देखती-पढ़ती और रोती रही। अपने मोबाइल में देखती हूं की मेरे फोनबुक में हर उम्र के,अलग-अलग प्रोफेशन के, भिन्न प्रान्त के सभी लोगों ने उनको याद किया और श्रद्धांजलि दी। और यह आप सभी के साथ भी हुआ होगा। ऐसा कम ही देखने को मिलता है ना की कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से सभी के दिल में घर बना ले। यही दुनिया से विदा लेते समय असली कमाई है। और अपने स्वाभिमानी रतन टाटा ने तो समृद्धि, वैभव, सम्पन्नता, और टाटा ग्रुप की अंतरास्ट्रीय स्तर पर वृद्धि - यह सब तो कमाया ही है, पर इसके आगे जो वे कमा गए हम आज बात यहां उसकी कर रहे हैं। और यही वो बात है जिसने हमारी आँखें अभी तक नम कर रखी हैं।  कितने चुनिंदा होते हैं ऐसे लोग जो इस तरह का बड़ा जीवन जी जाते? प्रभु का अनेकों आशीर्वाद इन पे की इस तरह के जीवन से उनको नवाजा गया है। वाकई ये है सही मायने में "लाइफटाइम अचीवमेंट"।

रतन टाटा के बारे में:



28 दिसंबर 1937 को जन्मे रतन टाटा, नवाल और सूनू टाटा के पुत्र थे। और फिर 1948 मे उनके माता-पिता अलग हो गए।  बात सिर्फ यहाँ पर आकर खत्म नहीं हो जाती है कि उनके माता पिता अलग हो गए।आगे ये भी हुआ कि उनकी माताजी ने दूसरी शादी कर ली और उस समय इस तरह से तलाक हो जाना और माता का अलग दूसरी जगह शादी कर लेना कोई आम बात नहीं थी। इस वजह से जब इतने छोटे रतन अपने स्कूल जाते थे तो वहाँ पर भी उनके दोस्तों से वो बहुत चिढ़ाते थे। उनकी माता के दूसरा विवाह कर लेने से ज़रा सोचिए की उनके बाल मन पर किस प्रकार असर हुआ होगा। देखा गया है की माँ के ना होने बच्चों में एक विशेष प्रकार का खालीपन ताउम्र उनके साथ रहता है। अकेले बच्चे को यह वाकये कमजोर या नेगेटिव बनाने के लिए बहुत होते हैं। मुमकिन है की कोमल गुण जैसे स्नेह, सरलता, सहजता आदि जैसे भाव भी इन बच्चों के आचरण मे नहीं आते। अपने रतन टाटा ने बचपन के शुरुआती दिनों से ही इसे जीया और झेला है। पर इनके जितना विशाल और सहृदय तो दुनिया मे चुनिंदा ही हैं। 



इसके बाद उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने उन्हे पाला और बड़ा किया। इसी वजह से उनका अपनी दादी जी से लगाव गहरा रहा। और दादी की तबीयत खराब होने पर वे अपनी अमेरिका की नौकरी तुरंत छोड़कर भारत आ गए। रतन टाटा के अपने पिता नवल टाटा से बिल्कुल नहीं बनती थी। बचपन मे रतन टाटा वाइलिन सीखना चाहते थे लीकें पिता ने उन्हे पियानो सीखने को कहा। पिता चाहते थे रतन टाटा इंजीनियरिंग करें पर रतन टाटा को आर्किटेक्ट बनना था और आखिरकार इंजीनियरिंग मे दाखिला लेने के बाद भी अंततः उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से बी.आर्क की डिग्री प्राप्त की थी।1962 के अंत में भारत लौटने से पहले उन्होंने लॉस एंजिल्स में जोन्स और इमन्स के साथ कुछ समय काम किया।




यहां देखें टाटा की फैमिली ट्री:



सदस्य 
जन्म-मृत्यु
रिश्ता/पद
योगदान/उपलब्धियां
नुसीरवानजी टाटा
1822–1886
टाटा परिवार के पितामह
टाटा परिवार के संस्थापक, पत्नी जीवनबाई कावसजी टाटा
जमशेदजी टाटा
1839–1904
नुसरवानजी टाटा के पुत्र, टाटा समूह के संस्थापक
"भारतीय उद्योग के जनक," टाटा स्टील, ताजमहल होटल, जलविद्युत
दोराबजी टाटा
1859–1932
जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े पुत्र, टाटा समूह के उत्तराधिकारी
टाटा स्टील और टाटा पावर जैसे प्रमुख उद्योगों की स्थापना
रतनजी टाटा
1871–1918
जमशेदजी टाटा के छोटे पुत्र
कपास और वस्त्र उद्योगों में टाटा व्यवसाय का विस्तार
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD)
1904–1993
रतनजी टाटा और सुज़ान ब्रियरे के पुत्र, टाटा समूह के चेयरमैन
टाटा एयरलाइंस (एयर इंडिया) की स्थापना, 50 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व
नवल टाटा
1904–1989
रतनजी टाटा के दत्तक पुत्र
टाटा समूह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
रतन टाटा
1937–2024
नवल टाटा और सूनी कमिसारियट के पुत्र
टाटा समूह का वैश्विक विस्तार, कोरस, JLR, और टेटली जैसे अधिग्रहण
नोएल टाटा
1957–वर्तमान
रतन टाटा के सौतेले भाई
टाटा समूह में सक्रिय भूमिका


2008 में भारत सरकार ने उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, प्रदान किया था। वह 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रिटायर हुए। प्रेरक रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह की कहानी उन साहसी कदमों की है, जिसने न सिर्फ टाटा को बल्कि पूरे भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नक्शे पर मजबूती से खड़ा किया। यह कहानी एक विजन, दूरदर्शिता और आत्मविश्वास की है, जिसने दुनिया को दिखाया कि भारतीय कंपनियां भी वैश्विक मंच पर नेतृत्व कर सकती हैं। प्रगतिशील सोंच और निरंतर अथक प्रयास करके टाटा संस को चार मिलियन से 100 मिलियन डॉलर की कंपनी बना दी। ये तभी मुमकिन है जब वर्क लाइफ बैलेंस नहीं बल्कि 'वर्क लाइफ इंटिग्रेशन हो"।  

साल 2000 में टाटा टी ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण, 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर की डील, भारतीय व्यापार इतिहास का पहला सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सौदा बन गया। दुनिया भर में चाय के कारोबार में पहले से मजबूत टाटा ने यह साबित कर दिया कि वह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहना चाहता। टेटली के इस अधिग्रहण ने भारतीय कंपनियों के लिए नई संभावनाओं के दरवाजे खोल दिया। अब यह कोई छोटी बात नहीं थी—भारत ने ब्रिटेन के चाय बाजार में अपनी जगह बनाई थी। इसे महज एक डील नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक जीत माना गया।

कुछ साल बाद, 2007 में, एक और साहसिक कदम सामने आया। इस बार टाटा स्टील ने 6.2 बिलियन पाउंड में यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया। यह भारतीय स्टील उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा सौदा था। जब कोरस का अधिग्रहण हुआ, तो दुनिया भर के उद्योगपति और विशेषज्ञ चौंक गए। यह भारत के लिए गर्व का पल था। कोरस को खरीदकर टाटा ने दुनिया के स्टील उद्योग में भारतीय उपस्थिति को मजबूत किया। यह फैसला रतन टाटा की दूरदर्शिता और भारतीय उद्योग जगत की वैश्विक स्तर पर उभरती ताकत का प्रतीक बन गया।


लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। 2008 में एक और अध्याय लिखा गया, जब टाटा मोटर्स ने प्रतिष्ठित ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर का 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में अधिग्रहण किया। यह सिर्फ एक कंपनी खरीदने की बात नहीं थी, यह भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए एक गर्व का क्षण था। भारत का एक ब्रांड, जिसने साधारण ट्रकों और कारों के साथ शुरुआत की थी, अब दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित और लक्ज़री कार कंपनियों का मालिक बन गया था। रतन टाटा का यह निर्णय जोखिम भरा था, लेकिन इस सौदे ने टाटा मोटर्स को अंतरराष्ट्रीय ऑटोमोबाइल बाजार में एक नई पहचान दिलाई।  

पर इस वाकये से जुड़ा एक किस्सा है वो साझा करना चाहूंगी। इंडिका की सेल्स लगातर गिरती जा रही थी। टाटा मोटर्स को बेचने नई नौबत आगे थी। तब वे फोर्ड कंपनी के पास गए तब उसके मालिक बिल फोर्ड ने उनका मज़ाक उड़ाया की जो काम आता नहीं उसे इंडिया वाले करने की कोशिश ही क्यों करते हैं ! इस पर रतन सर ने कंपनी बेचने का इरादा बदल दिया। आगे चल के समय का चक्र ऐसा घूमा की फोर्ड कंपनी दिवालिया हो गयी। तब मालिक बिल फोर्ड रतन सर के पास गए और मदद मांगी तब राटा टाटा ने उनकी जैगुआर और लैंडरोवर खरीद ली। 

रतन टाटा के इन फैसलों ने दिखाया कि भारतीय कंपनियां सिर्फ अपने देश तक सीमित नहीं हैं। वे दुनिया में बड़ी सोच और मजबूत इरादों के साथ कदम रख सकती हैं। चाहे वो टेटली हो, कोरस हो, या फिर जगुआर-लैंड रोवर, ये अधिग्रहण एक नई दिशा की ओर बढ़ने की कहानी थी। एक कहानी जो हमें सिखाती है कि अगर नेतृत्व में विश्वास हो और इरादे बुलंद हों, तो भारत भी दुनिया का नेतृत्व कर सकता है।



ऐसे अनुशासित, ईमानदार और निडर रतन टाटा हमेशा अपने कर्मचरियों के प्रति संवेनदशील रहते। उन्हें व्यापार जगत के उनके दोस्त और भारत की बड़ी कंपनी इनफ़ोसिस के चेयरपर्सन नारायण मूर्ति अपने अजीज़ दोस्त रत तात को अल्ट्रा (courteous) यानि बेहद शिष्ट, सभ्य और मर्यादित बताते हैं। वहीँ आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला कहते हैं की हमे उनके जीवनका जश्न मानना चाहिए। 

इतनी बड़ी साख के बावजूद रतन टाटा कभी किसी राजनीतिक विवाद में नहीं आए। टाटा नैनो के बंगाल वाकये के बाद जब राटा टाटा यद् करते हैं की कैसे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने उन्हें अपना नैनो प्लांट बंगाल में जगह ना मिलने के बाद गुजरात में आने का न्योता दिया था और तीन दिन के भीतर उन्हें जमीन दिलवाई थी अपने कहे के अनुसार, टाटा याद करते हैं की यह भारत में याह बात नयी थी की चीज़ें इतनी जल्दी हो जाएं। इसलिए रतन टाटा कहते हैं की श्री नरेंद्र मोदी भारतवासियों को नया भारत दे रहे हैं।  


                           


रतन टाटा ने अपने उद्योग से कहीं आगे जाकर देश के हित को सबसे ऊपर रखा। उनकी सोच हमेशा नफ़ा-नुक़सान से परे रही, और यही बात उन्हें असाधारण बनाती है। उन्होंने टाटा ग्रुप की गवर्नेंस को इस कदर मज़बूत और परिपक्व बना दिया कि आज उनके न होने पर भी किसी के मन में यह सवाल नहीं उठता कि इस विशाल साम्राज्य को अब कौन सँभालेगा।



कहानी यही खत्म नहीं होती। टाटा ग्रुप के अंतर्गत सैकड़ों कंपनियाँ आती हैं, और हर एक कंपनी का अपना अलग सीईओ होता है। क्या यह अद्भुत नहीं है कि इतनी सारी कंपनियों का संचालन किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं है, बल्कि, एक पारदर्शी और स्वायत्त व्यवस्था काम कर रही है, जो पूरी तरह से रतन टाटा की दूरदृष्टि का नतीजा है।

सोचिए, ऐसा सिस्टम जो किसी एक व्यक्ति की अनुपस्थिति में भी चल रहा है, कोई उहापोह नहीं, कोई अनिश्चितता नहीं। यह केवल नेतृत्व नहीं है, यह एक मिसाल है, एक विचारधारा जिसने टाटा ग्रुप को एक नई ऊँचाई दी। इस कहानी में रतन टाटा सिर्फ एक उद्योगपति नहीं, बल्कि एक विचारक, एक निर्माता, और सबसे बड़ी बात, एक सच्चे देशभक्त के रूप में सामने आते हैं। वे कहते थे की वे कहते हैं की भारत प्रगति की सीढ़ियां चढ़ते जाए और इकनोमिक पावर बने। और सभी इसमें अपना योगदान दें। वे  में हर वो बिज़नेस अच्छा चल सकता है जो ग्राहकों की ज़रुरत और भावनाओं का ध्यान रखे। उन्हें वो काम करने में सबसे ज़ायदा  जिसे लोग कहते थे ेय तो हो हो नहीं सकता। 



आज के सोशल मीडिया के क्रूरतम दौर में, जहां हर कोई दूसरों पर उंगलियां उठाने में देर नहीं लगाता, वहां रतन टाटा जैसा बन पाना वाकई दुर्लभ है। क्‍योंकि वे ना तो कोई आध्‍यात्मिक गुरु थे, और ना ही किसी धार्मिक या फिलॉसफिकल आंदोलन के नेता। फिर भी, उनके व्‍यक्तित्‍व में एक ऐसी गहराई थी, जो लोगों को उनसे जुड़ने के लिए प्रेरित करती थी।

रतन टाटा एक बेहद कुशल बिजनेसमैन थे—इसमें कोई शक नहीं। लेकिन जिस तरह से हम आमतौर पर बिजनेस टायकून की छवि बनाते हैं, वो उससे बिलकुल अलग थे। मुनाफाखोरी से दूर, उनका हर कदम लोगों की भलाई और समाज के कल्‍याण के लिए उठाया गया लगता था। ऐसा क्‍या था उनके व्‍यवसायिक दृष्टिकोण में कि वे सिर्फ एक उद्योगपति नहीं, बल्कि देशभर के लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन गए?

उनकी सादगी, उनके हर फैसले में झलकती थी। चाहे वह टाटा नैनो जैसी आम आदमी की कार हो, या फिर उनकी परोपकारी गतिविधियाँ। यह सोचकर हैरानी होती है कि कैसे एक बिजनेसमैन, जो मुनाफे के पीछे भाग सकता था, ने अपने फायदे से ज्‍यादा समाज की बेहतरी को महत्‍व दिया।



सोचने वाली बात है, रतन टाटा—क्‍या है इस नाम में कि जब भी कोई इसे सुनता है, तो मन में एक शांत और मुस्‍कुराती छवि उभरती है। मानो जैसे कोई अपना ही चेहरा हो, जो सिर्फ सादगी और गरिमा से भरा हुआ हो।आखिर क्‍या है रतन टाटा में जो उन्‍हें सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बना देता है? हर व्यक्ति इनके लिए प्रिय था। हर व्यक्ति के ये प्रिय बने। और पशु तो भाव की भाषा ही समझता है। हमारे रतन सर उनके भी करीब थे। आपको यह जान कर अच्छा लगेगा की ताज होटल मुंबई में किसी भी तरह के श्वानों (कुत्तों) के आने पे उन्हें रोकने की सख्त मनाही है। किस्सा भी है जब सर रतन ने प्रिंस चार्ल्स का रत्न सर को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देने के इवेंट में जाना कैंसिल कर दिया था क्यूंकि उनका पेट बीमार था। जिसके प्रिंस चार्ल्स ने भी सराहना की थी। 

विनम्र, सहृदय और दानवीर स्वभाव के रतन टाटा के बारे में जिक्र करने को आगे बहुत कुछ है जिसे मैं अपने ब्लॉग की अगली कड़ी में साझा करूंगी।




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