रतन टाटा - बिजनेस जगत का विनम्र सितारा
पर्दा गिरने क बाद भी तालियां बज रही है, समां भावुक है,
लगता है कोई ज़िन्दगी का किरदार कमाल का निभा के चला गया
रतन टाटा के बारे में:
यहां देखें टाटा की फैमिली ट्री:
सदस्य | जन्म-मृत्यु | रिश्ता/पद | योगदान/उपलब्धियां |
नुसीरवानजी टाटा | 1822–1886 | टाटा परिवार के पितामह | टाटा परिवार के संस्थापक, पत्नी जीवनबाई कावसजी टाटा |
जमशेदजी टाटा | 1839–1904 | नुसरवानजी टाटा के पुत्र, टाटा समूह के संस्थापक | "भारतीय उद्योग के जनक," टाटा स्टील, ताजमहल होटल, जलविद्युत |
दोराबजी टाटा | 1859–1932 | जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े पुत्र, टाटा समूह के उत्तराधिकारी | टाटा स्टील और टाटा पावर जैसे प्रमुख उद्योगों की स्थापना |
रतनजी टाटा | 1871–1918 | जमशेदजी टाटा के छोटे पुत्र | कपास और वस्त्र उद्योगों में टाटा व्यवसाय का विस्तार |
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD) | 1904–1993 | रतनजी टाटा और सुज़ान ब्रियरे के पुत्र, टाटा समूह के चेयरमैन | टाटा एयरलाइंस (एयर इंडिया) की स्थापना, 50 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व |
नवल टाटा | 1904–1989 | रतनजी टाटा के दत्तक पुत्र | टाटा समूह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
रतन टाटा | 1937–2024 | नवल टाटा और सूनी कमिसारियट के पुत्र | टाटा समूह का वैश्विक विस्तार, कोरस, JLR, और टेटली जैसे अधिग्रहण |
नोएल टाटा | 1957–वर्तमान | रतन टाटा के सौतेले भाई | टाटा समूह में सक्रिय भूमिका |
साल 2000 में टाटा टी ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण, 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर की डील, भारतीय व्यापार इतिहास का पहला सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सौदा बन गया। दुनिया भर में चाय के कारोबार में पहले से मजबूत टाटा ने यह साबित कर दिया कि वह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहना चाहता। टेटली के इस अधिग्रहण ने भारतीय कंपनियों के लिए नई संभावनाओं के दरवाजे खोल दिया। अब यह कोई छोटी बात नहीं थी—भारत ने ब्रिटेन के चाय बाजार में अपनी जगह बनाई थी। इसे महज एक डील नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक जीत माना गया।
कुछ साल बाद, 2007 में, एक और साहसिक कदम सामने आया। इस बार टाटा स्टील ने 6.2 बिलियन पाउंड में यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया। यह भारतीय स्टील उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा सौदा था। जब कोरस का अधिग्रहण हुआ, तो दुनिया भर के उद्योगपति और विशेषज्ञ चौंक गए। यह भारत के लिए गर्व का पल था। कोरस को खरीदकर टाटा ने दुनिया के स्टील उद्योग में भारतीय उपस्थिति को मजबूत किया। यह फैसला रतन टाटा की दूरदर्शिता और भारतीय उद्योग जगत की वैश्विक स्तर पर उभरती ताकत का प्रतीक बन गया।
इतनी बड़ी साख के बावजूद रतन टाटा कभी किसी राजनीतिक विवाद में नहीं आए। टाटा नैनो के बंगाल वाकये के बाद जब राटा टाटा यद् करते हैं की कैसे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने उन्हें अपना नैनो प्लांट बंगाल में जगह ना मिलने के बाद गुजरात में आने का न्योता दिया था और तीन दिन के भीतर उन्हें जमीन दिलवाई थी अपने कहे के अनुसार, टाटा याद करते हैं की यह भारत में याह बात नयी थी की चीज़ें इतनी जल्दी हो जाएं। इसलिए रतन टाटा कहते हैं की श्री नरेंद्र मोदी भारतवासियों को नया भारत दे रहे हैं।
रतन टाटा ने अपने उद्योग से कहीं आगे जाकर देश के हित को सबसे ऊपर रखा। उनकी सोच हमेशा नफ़ा-नुक़सान से परे रही, और यही बात उन्हें असाधारण बनाती है। उन्होंने टाटा ग्रुप की गवर्नेंस को इस कदर मज़बूत और परिपक्व बना दिया कि आज उनके न होने पर भी किसी के मन में यह सवाल नहीं उठता कि इस विशाल साम्राज्य को अब कौन सँभालेगा।
कहानी यही खत्म नहीं होती। टाटा ग्रुप के अंतर्गत सैकड़ों कंपनियाँ आती हैं, और हर एक कंपनी का अपना अलग सीईओ होता है। क्या यह अद्भुत नहीं है कि इतनी सारी कंपनियों का संचालन किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं है, बल्कि, एक पारदर्शी और स्वायत्त व्यवस्था काम कर रही है, जो पूरी तरह से रतन टाटा की दूरदृष्टि का नतीजा है।
सोचिए, ऐसा सिस्टम जो किसी एक व्यक्ति की अनुपस्थिति में भी चल रहा है, कोई उहापोह नहीं, कोई अनिश्चितता नहीं। यह केवल नेतृत्व नहीं है, यह एक मिसाल है, एक विचारधारा जिसने टाटा ग्रुप को एक नई ऊँचाई दी। इस कहानी में रतन टाटा सिर्फ एक उद्योगपति नहीं, बल्कि एक विचारक, एक निर्माता, और सबसे बड़ी बात, एक सच्चे देशभक्त के रूप में सामने आते हैं। वे कहते थे की वे कहते हैं की भारत प्रगति की सीढ़ियां चढ़ते जाए और इकनोमिक पावर बने। और सभी इसमें अपना योगदान दें। वे में हर वो बिज़नेस अच्छा चल सकता है जो ग्राहकों की ज़रुरत और भावनाओं का ध्यान रखे। उन्हें वो काम करने में सबसे ज़ायदा जिसे लोग कहते थे ेय तो हो हो नहीं सकता।
रतन टाटा एक बेहद कुशल बिजनेसमैन थे—इसमें कोई शक नहीं। लेकिन जिस तरह से हम आमतौर पर बिजनेस टायकून की छवि बनाते हैं, वो उससे बिलकुल अलग थे। मुनाफाखोरी से दूर, उनका हर कदम लोगों की भलाई और समाज के कल्याण के लिए उठाया गया लगता था। ऐसा क्या था उनके व्यवसायिक दृष्टिकोण में कि वे सिर्फ एक उद्योगपति नहीं, बल्कि देशभर के लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन गए?
उनकी सादगी, उनके हर फैसले में झलकती थी। चाहे वह टाटा नैनो जैसी आम आदमी की कार हो, या फिर उनकी परोपकारी गतिविधियाँ। यह सोचकर हैरानी होती है कि कैसे एक बिजनेसमैन, जो मुनाफे के पीछे भाग सकता था, ने अपने फायदे से ज्यादा समाज की बेहतरी को महत्व दिया।
सोचने वाली बात है, रतन टाटा—क्या है इस नाम में कि जब भी कोई इसे सुनता है, तो मन में एक शांत और मुस्कुराती छवि उभरती है। मानो जैसे कोई अपना ही चेहरा हो, जो सिर्फ सादगी और गरिमा से भरा हुआ हो।आखिर क्या है रतन टाटा में जो उन्हें सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बना देता है? हर व्यक्ति इनके लिए प्रिय था। हर व्यक्ति के ये प्रिय बने। और पशु तो भाव की भाषा ही समझता है। हमारे रतन सर उनके भी करीब थे। आपको यह जान कर अच्छा लगेगा की ताज होटल मुंबई में किसी भी तरह के श्वानों (कुत्तों) के आने पे उन्हें रोकने की सख्त मनाही है। किस्सा भी है जब सर रतन ने प्रिंस चार्ल्स का रत्न सर को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देने के इवेंट में जाना कैंसिल कर दिया था क्यूंकि उनका पेट बीमार था। जिसके प्रिंस चार्ल्स ने भी सराहना की थी।
विनम्र, सहृदय और दानवीर स्वभाव के रतन टाटा के बारे में जिक्र करने को आगे बहुत कुछ है जिसे मैं अपने ब्लॉग की अगली कड़ी में साझा करूंगी।
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