पेड़ गोदाम है, समय का, स्मृतियों का, स्पर्शों का!

पेड़ - संवाद स्पर्श का



पेड़ जैसे एक गोदाम है, समय का, स्मृतियों का, स्पर्शों का। बिलकुल ये समझते हैं, सहमते हैं, संजोते हैं, और स्वीकार लेते हैं। तभी तो वे लोग जिनके हिस्से इंसान नहीं आते बतियाने के लिए वे अक्सर पेड़ों से दोस्ती करते हैं। भले पेड़ कहे शब्द ना समझें पर ये हमारे भीतर की प्रवृति को भली भांति महसूस करते हैं।

कभी आपने गौर किया होगा की कहीं किसी बेतरतीबी से बनी झोपडी के द्वार पर चटक लाल रंग में गुड़हल के फूल मुस्कुरा रहे होते हैं, बिना कसी सजावटी गमले या विशेष खाद के। इनके मुस्कुराने की वजह होती है आसपास फुदकती एक छोटी सी चिड़िया, खिलखिलाते खेलते बच्चे, सहलाती रिमझिम बूंदे, सुबह इनके खिलने की खबर एक दुसरे को देकर खुश होते माँ - पिता जी।

मौसम की बारिश पेड़ की सारी थकान ख़त्म कर देती है। एक शरारती गिलहरी से पेड़ की डालियों की रौनक बनी रहती है। रात में झींगुर पेड़ को जगमगा देता है। पास बहती नदी पेड़ का साथ निभाती है। कुछ पेड़ों की आयु तो शायद नदी की उम्र जैसी होती है। अगर इंसान कुल्हाड़ी ना मारे तो बहुत से पेड़ों की आयु बढ़ जाए।

पेड़ उस कुल्हाड़ी से नहीं सहमता जो एक घर का चूल्हा जलाने के लिए उससे कुछ डालियाँ लेने आई है, उदारता है यह उसकी। पर पेड़ उस कुल्हाड़ी से ज़रूर घबराता जाता है जो उसे जड़ समेत खत्म करने आयी है।

एक पेड़ ने एक बार मुझसे कहा था कि जब कोई उसे अपने गले लगता है, स्नेह से सहलाता है, माथा टिकाकर सुकून अनुभव करता है तब उन घावों का दर्द कम हो जाता है जो कुल्हाड़ियों से हुआ था। इसलिए कभी आप भी पेड़ की स्मृतियों में एक स्नेहिल स्पर्शों को दर्ज करना। उसके बदन को इस तरह अपनी छाती से लगाना कि पेड़ को पता ना चल पाए कि उसे बारिश ने चूमा, या हवा ने। रात में वो चन्द्रमा था या तुम थे!

जब से मेरे जहन ने पेड़ों को जगह दी तब से मैं हर पेड़ की स्मृति में अनुराग (प्यार) बनकर रह रही हूँ।




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