क्या आप संवेदनशील हैं ?
सभी को इस पृथ्वी पर ना सिर्फ रहने का का बल्कि बेख़ौफ़ और बेबाकी से रहने का उतना ही अधिकार है जितना किसी एक को है।
संवेदनशीलता कहीं खो गयी है। जानवरों के प्रतिरूप खिलौने टेडी बेयर के साथ खेलकर बड़े हुए बच्चे सड़क किनारे बैठे गाय और कुत्तों को पत्थर मारने लगते हैं क्यों की शायद बड़ों ने उन्हें डराया है। क्यों अभिवाहक बच्चों को ये नहीं बताते की बेजुबान प्राणी शायद भूखा हो इसलिए कुछ खाने को मिल जाने की आस में पीछे पीछे आया है।
वैसे जो बच्चे घर के पालतू के साथ खेलते हैं या किसी भी पक्षी -पौधों के प्रति संवेदनशील है वे आगे चलकर मज़बूत शख्सियत पाते हैं। पक्षी-पौधों जानवरों की ज़रूरतों को समझना, उनका ध्यान रखना आसान नहीं है। जो ऐसा कर पाते हैं वे किसी के बिना कहे उनकी तकलीफ समझने लगते हैं। बेजुबान को समझने वाले शब्दों के मोहताज नहीं रहते
अगर सवेदना ढूंढ रहे हैं किसी के दिल में तो पहले संवेदनशील इंसान बनाइये। और ये कैसे होगा? अपने बच्चों के कोमल मन की कच्ची माटी में संवेदना के बीज बो कर।
संवेदनशीलता व्यक्तित्व की गहराई में रहती है। छोटे दिल में ना इसे भी घुटन होती है। संवेदना हमे स्वीकृति सिखाती है। और यह मैं समझती हूं हमारे खुश रहने के लिए बड़ा सूत्र है। जो जैसा है उसे वैसे स्वीकारना, कला है जनाब, विरले के पास ही मिलती है। सामान्य बात होती तो क्या ही बात थी!
संवेदना हमे सम्मान देना भी सिखाती है। ये तो सभी को पसंद है, बस मिलते रहे। देते वक़्त जोर आता है। संवेदनशीलता हमे गहरे अर्थों में सोचने और नए दृष्टिकोणों से जीवन को देखने का तरीका बताती है।
संवेदनशील होना जितना सरल, सहज, सौम्य और शालीन होना है, यह उतना ही सक्षम होना है। और ये सराहनीय है। यहां सफलता निश्चित है। यह तो इंसानी फितरत है ना? यह तो सॉफ्टवेयर है जो प्रभु ने बाय डिफ़ॉल्ट ही इंसान में डाली है। बड़े होते होते कई लोग जाने क्यों इसे डिसएबल कर देते हैं। सजीव होने के अनुभव से चूक जाइएगा जब सरलता खो दीजिएगा।
आज की तेज़ी और तेज़ी से बदलते संसार में संवेदना छूटती जा रही है। संभाल लीजिए।
एहसास है यारों, यह एहसास है और बिना इसके कैसा जीना ! पहले ही बहुत घूम रही हैं इंसानी मशीने पृथ्वी पे, इस ज़ोम्बी - नुमा भीड़ का हिस्सा बनने से खुद को बचा लीजिए।
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