बेतवा किनारे ओरछा की कहानियों का खजाना
हम ग्वालियर से सुबह 7 बजे निकले थे अपनी गाडी से। वहां से 122 किलोमीटर की दूरी तय करके हम लगभग 10 बजे श्री राम राजा मंदिर पहुँच गए थे। सुबह का वक़्त था तो नगरी शांत मिली। दुकानदारों ने अपनी दुकाने खोल लीं थी। सफाई भी ठीक ठाक थी। पर शौचालयों की स्थिति बेहद ख़राब मिली। और इसलिए हमे गाडी चलाकर कुछ दूर आगे की तरफ एक वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी की तरफ से आगे जा कर जंगल के रास्ते में मैनेज करना पड़ा। और ये ठीक नहीं है , पर मजबूरी थी। सरकार को इस दिशा में वाक़ई ध्यान देना चाहिए।
जहाँ गाडी पार्क की वहीँ 30 रुपए की रसीद काट ली पार्किंग की और गाडी वापस लेते वक़्त वह रसीद हमसे मांग ली गई, पूछने पर कोई जवाब नहीं दिया गया। और बाद में थोड़ी ही दूर पर गाडी पार्क करनी थी जहाँ फिर से 30 रुपए की रसीद कटी। यहाँ पता चला की एक बार पार्किंग की रसीद कट जाने पर पूरे ओरछा में गाडी कहीं भी पार्क की जा सकती है, वही रसीद दिखाकर। तो आप जब जाइएगा तो इस इस छोटू से स्कैम से बच जाइएगा।
अब आती है प्रसाद की बारी। यहाँ हमे बुर्ज नुमा आकर में चीनी के टीले दिखे जो की गहरे भूरे रंग के थे। ये हमने 100 रुपए के 100 ग्राम लेने पड़े। हलाकि मंदिर के भीतर में ही 30 - 120 रुपए का प्रसाद मिलता है जो की मंदिर वालों के द्वारा ही संचालित है क्यूंकि इसका कूपन लेना होता है। यह परिसर में ही है , प्रवेश की दायीं तरफ। तो जब आप आएं तो प्रसाद में चीनी के टीले लेने से बच सकते हैं।ओरछा, इतिहास और संस्कृति का संगम है। तो आइए, एक यात्रा पर चलते हैं और जानते हैं ओरछा के कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में।
पहली आरती सुबह 7 बजे ही सम्पन्न हो जाती है और हम 10 बजे पहुंचे थे। तो सुबह की आरती का समय तो निकल ही चुका था पर मंदिर के गर्भ गृह के दर्शन करने में हमे 10 मिनट से ऊपर नहीं लगे।
राम राजा मंदिर: ओरछा का केंद्र
भगवान श्रीराम का ओरछा में 400 वर्ष पूर्व राज्याभिषेक हुआ था और उसके बाद से आज तक यहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है। यह पूरी दुनिया का एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम की राजा के रूप में पूजा की जाती है। यूनेस्को द्वारा आधिकारिक घोषणा के बाद ओरछा भारत का एकमात्र राज्य संरक्षित विश्व धरोहर स्थल बन जाएगा ।
मंदिर के बारे में कहते हैं की:-
तो बात 15वीं शताब्दी की है। सिकंदर लोदी जैसे सुल्तानों से लोहा लेने के लिए भी जाने जाते बुन्देला राजा रुद्र प्रताप सिंह जूदेव ने एक ऐसी जगह की स्थापना की, जहां एक ऐसी कहानी ने जन्म लिया जो आज भी लोगों के दिलों में बसती है—राम राजा मंदिर की कहानी।
तो, हुआ यूं कि मधुकर शाह बुन्देला की पत्नी, रानी गनेश कुवर राजे, जिनका रौब खुद ग्वालियर जिले के करहिया गांव से लेकर अयोध्या तक था, एक सपना देखती हैं। सपने में उन्हें भगवान राम दर्शन देते हैं और उन्हें ओरछा लाने का आदेश देते हैं। रानी साहिबा ने तुरंत फैसला किया कि वे पैदल चलकर अयोध्या जाएंगी और श्री राम भगवन की मूर्ती को ओरछा लाएंगी।
चतुर्भुज मंदिर: जहां स्थापित ना हो पायी श्री राम भगवन की मूर्ती
ओरछा के एक विशाल पत्थर के मंच पर स्थित चतुर्भुज मंदिर अपनी भव्यता और अद्वितीय वास्तुकला से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। खड़ी सीढ़ियों की लंबी उड़ान आपको उस गर्भगृह तक ले जाती है, जिसे भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करने के लिए बनाया गया था। लेकिन इस कहानी में एक दिलचस्प मोड़ है—जो इसे और भी खास बनाता है।
यह वही मंदिर है जिसे ओरछा की महारानी ने भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करने के उद्देश्य से बनवाया था। कहा जाता है कि महारानी भगवान राम की प्रतिमा अयोध्या से लाने के लिए पैदल चलकर गईं और उसे अपने साथ ओरछा लेकर आईं। लेकिन जब प्रतिमा को अस्थायी रूप से महल के भोजकक्ष में रखा गया, तो वह वहीं स्थायी रूप से प्रतिष्ठित हो गई। चतुर्भुज मंदिर, जिसे भगवान राम के लिए बनाया गया था, आज अन्य सनातन देवी-देवताओं की मूर्तियों का स्थान बन गया है।
मंदिर का बाहरी हिस्सा कमल और धार्मिक प्रतीकों की नाजुक नक्काशी से सजा हुआ है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाता है। वहीं, अंदर का गर्भगृह बेहद सादा है, लेकिन उसकी ऊँची और गुंबददार दीवारें एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव देती हैं। अगर आप थोड़ा साहसिक महसूस कर रहे हैं, तो छत पर छुपी हुई सीढ़ियों को जरूर खोजें। वहाँ से पूरे ओरछा का अद्भुत दृश्य आपको समय में पीछे ले जाता है।
समाधि स्थल: छतरियों की अनोखी शान
ओरछा के दक्षिणी छोर पर बेतवा नदी के कंचन घाट के किनारे आपको ओरछा के शासकों की 14 भव्य छतरियाँ मिलेंगी। ये स्मारक उनकी शौर्य गाथाओं और उनकी समृद्धि के प्रतीक हैं। नदी के किनारे टहलते हुए, इन छतरियों की छत पर चढ़कर बेतवा का मनोरम दृश्य देखना सचमुच मन को शांति देता है। यहाँ का हर कोना अतीत की कहानियाँ बयाँ करता है।
किला परिसर: ओरछा का गौरव
किला परिसर ओरछा का एक प्रमुख आकर्षण है। यहां के तीन हिस्से—जहांगीर महल, राय परवीन महल और राज महल—इतिहास और स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने हैं।
जहांगीर महल: ओरछा की शान और आपकी फोटो एल्बम का ताज
जहांगीर महल, ओरछा के महलों के बीच सबसे प्रतिष्ठित वास्तुकला है। इसे 17वीं शताब्दी में राजा बीर सिंह जू देव ने मुगल सम्राट जहांगीर के ओरछा आगमन की याद में बनवाया था। इसकी मजबूत संरचना, जालीदार खिड़कियों और अद्भुत डिज़ाइन का संतुलन इसे अनोखी भव्यता प्रदान करता है।
यह महल न केवल इतिहास के झरोखे खोलता है, बल्कि इंस्टाग्राम के लिए परफेक्ट बैकड्रॉप भी है। हमने अपनी यात्रा के दौरान यहां कुछ प्री-वेडिंग शूट होते हुए देखे। हर कोना आपको शाही और भव्य एहसास कराता है। ओरछा भ्रमण का लगभग 40% समय आप इस महल में बिताने की योजना बना सकते हैं, ताकि यहां के हर सुंदर पल को अपने कैमरे में कैद कर सकें।
फोटो-प्रेमियों के लिए टिप्स:
- अगर आप तस्वीरों में शाही अंदाज चाहते हैं, तो पारंपरिक परिधान जरूर पहनें। ये महल की शाही वाइब्स के साथ एकदम सही मेल खाएगा।
- पानी की बोतल जरूर साथ रखें। यहां छोटे कैफे या दुकानों की कमी आपको प्यासा और हल्का उदास कर सकती है। स्नैक्स और पानी पहले से लेकर आएं ताकि आपकी यात्रा आरामदायक हो।
जहांगीर महल एक परफेक्ट फोटो-वर्दी जगह है, जो आपकी ओरछा यात्रा को अविस्मरणीय बना देगी। तो, कैमरा तैयार करें और यहां की शाही भव्यता को कैद करने के लिए पूरी तरह तैयार रहें!
राय परवीन महल न केवल एक अद्भुत स्थापत्य का उदाहरण है, बल्कि यह ओरछा की उस जानी-मानी कवयित्री और संगीतकार राय परवीन की कहानी को जीवंत करता है, जिनकी सुंदरता और प्रतिभा के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे। उनकी कला और आकर्षण की खबर जब बादशाह अकबर तक पहुंची, तो वे इतने प्रभावित हुए कि राय परवीन को दिल्ली बुला लिया।
दिल्ली दरबार में पहुंचने पर, राय परवीन ने अकबर के सामने अपनी बुद्धिमत्ता और काव्य प्रतिभा का परिचय देते हुए एक कविता प्रस्तुत की:
इस कविता का अर्थ बेहद गहरा और प्रतीकात्मक है। राय परवीन कहती हैं कि जैसे कौआ, कुत्ता और चील जैसे प्राणी बासी और झूठा भोजन खाते हैं, वैसे ही सच्चे और समझदार राजा को भी अपने जीवन में केवल श्रेष्ठ और पवित्र चीज़ों को ही स्थान देना चाहिए। उनकी यह कविता न केवल उनकी वफादारी को प्रकट करती है, बल्कि अकबर के दिल को भी छू गई।
राय परवीन की इस शायरी और उनकी इंद्रमणि के प्रति अटूट वफादारी ने अकबर को उन्हें सम्मानपूर्वक ओरछा वापस भेजने पर मजबूर कर दिया।
आज, राय परवीन महल उनकी अद्वितीय कला, सुंदरता और साहस की कहानी कहता है। यह महल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक ऐसी कहानी का गवाह है, जो बताती है कि सच्चाई और वफादारी के सामने सबसे बड़े साम्राज्य भी झुक जाते हैं।
राज महल: एक शाही कथा और प्रभु राम का संदेश
राज महल, ओरछा का एक और अद्भुत रत्न, जिसे मधुकर शाह ने बनवाया था। उनकी धार्मिक प्रवृत्तियां महल की दीवारों पर बने अनमोल भित्ति चित्रों में जीवंत रूप से झलकती हैं। महल के अंदरूनी हिस्से में हर चित्र अपनी कहानी कहता है और आपको बीते समय की भव्यता में डुबो देता है।
महल का एक खास हिस्सा है रानी का निजी कक्ष, जिसे विशेष रूप से इस तरह बनाया गया था कि उसकी खिड़की से सीधे चतुर्भुज मंदिर के गर्भगृह के दर्शन हो सकें। यह रानी की गहरी भक्ति और भगवान राम के प्रति प्रेम को दर्शाता है। लेकिन कहते हैं कि जब भगवान राम ओरछा आए, तो उन्हें महल के भोजकक्ष में "स्थापित" कर दिया गया। रानी की यह इच्छा, कि वे अपने कमरे से ही भगवान राम के दर्शन करें, अधूरी रह गई।
लोककथाओं के अनुसार, भगवान राम ने रानी को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया। उन्होंने यह संदेश दिया कि यदि रानी को उनके दर्शन करने थे, तो उन्हें अपने शाही अहंकार को त्यागकर साधारण व्यक्ति की तरह मंदिर में आना होगा। प्रभु राम ने दिखाया कि सच्चे भक्ति भाव में कोई ऊंच-नीच या शाही आडंबर नहीं होता।
राज महल न केवल अपनी स्थापत्य कला और भित्ति चित्रों के लिए अद्वितीय है, बल्कि यह शाही अहंकार और सच्ची भक्ति की गूढ़ सीख भी देता है। यहां का हर कोना एक कहानी कहता है, जो आपके दिल को छू जाएगी और आपकी यात्रा को यादगार बना देगी।
बहुत मन था की यहाँ के मंदिर की मूर्ती का प्रतिबिम्ब स्वरुप कोई छोटी सी मूर्ति मिल जाती बहार दुकानों में तो मैं ओरछा धाम की सौगात के रूप में घर लेते आती। पर दुकानदारों से पूछने पर पता चला की श्री राम राजा तस्वीर खींचना और बेचना मना है तो मूर्ति मिल पाना तो बहुत दूर की बात है। सो, मैं कुछ ला नहीं पायी। इसके बारे में जब मैंने माँ को बताया तो माँ ने कहा की कुछ तो ले लेना चाहिए था। याद रहती। ये बात मेरे दिल में रुक गई। अब आगे से मैं इसका खयाल रखूंगी।
किलों की छतों से जब आप ओरछा नगर को निहारेंगे तो ये अनुभव आपको समय की यात्रा पर है जहाँ आप उस वक़्त में चहकने लगते हैं की जब यह नगर बसा होगा तब कैसा जीवंत रहा होगा! इन किलों, महलों के रहवासियों की सुबह और शामें किस तरह रोशन रहीं होंगी! इन छतों से नीचे उतरते वक़्त किसी खूबसूरत रानी की पायल के घुंघरू की आवाज़ महल के अनंत गलियारों में गूँज जाती होगी!
किलों के झरोखों पर राखी मशालें देर शाम किस प्रकार पूरे किले को दुल्हन सा सजा देती होंगी! यह श्री राम राजा का शहर कसी तरह दमकता होगा - धड़कता होगा! जिन जगहों पे आज हमने कई फोटोग्राफी की, कई शूट्स करते लोग देखे, उन जगहों पे उस समय जनता यूँ ही शामें गुजरा करती होंगी!
उस वक़्त के लोगों ने जो जीया उसका ज़रा सा भी हम चख नहीं पा रहे हैं, ये तो बीते काल खंड में जो रह गया बस उसी से हम इतने अचंभित हैं की उस समय का ही कमाल रहा होगा। जय सिया राम।
तो बोलिये श्री राम राजा सरकार की जय
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