जब प्रकृति ने नैना से झरने की बात कही
पिछली बार मैगनोलिया सनसेट पॉइंट (नेतरहाट, रांची) जाते समय इसका बोर्ड रस्ते में दिखा था। देख कर हम दोनों का मन उत्सुक भी हुआ की चलिए देखा जाए इस झरने को भी जिसका कोई जिक्र नहीं मिला था नेतरहाट में कहाँ घूमने जाएं की लिस्ट में। फिर माही ने गरूड़ घुमाया और हम प्रवेश कर गए उस रस्ते पे जो हमे एक और अलग दुनिया में लेकर जाने को तैयार ही था। इस राह में हमारे सिवा मुझे कोई और उत्सुक उत्साही सैलानी नहीं नज़र आ रहा था। कुछ दूर के बाद ही रास्ता आपको एक बेहद घने जंगल में धीरे धीरे उतारता जाता है अपने घुमावदार और गड्ढे पड़े मिटटी के रास्तों से।
जंगल वाक़ई गहराता जा रहा था। और हम सनसेट देखने निकले थे तो समय शाम का ही था। इसलिए रौशनी भी ढलती हुई थी। क्यूंकि बारिश भी कुछ देर पहले ही हुई थी इसलिए रास्ता बड़ा ही फिसलन भरा था। कुछ दूर तक तो हम उस हरे, गीले और घने होते जंगल में उतरे। फिर मुझे ही हलकी घबराहट महसूस होने लगी। हमारे अलावा दूसरा और कोई भी नहीं था वहां। ना किसी लोकल को वहां कुछ करते देख रहे थे ना किसी को हमारी तरह घूमते देख रहे थे सो मेरी उत्सुकता अब बेचैनी में बदलने लगी। फिर माही ने गरूड़ वहीं रोक दिया।
उतर कर हमने उस घने जंगल को मन भर देखा। बहुत ऊंचे ऊंचे पेड़ जहाँ तक उस समय देख पाना मुश्किल भी हो रहा था। कोई इंसान या जानवर भी ना होने की वजह से वहां की शान्ति में जंगल की आवाज़ें बेहद साफ़ सुनाई दे रही थी। अब अंधेरा भी ज़्यादा गहरा लगने लगा था। उन लम्हों को फोटोज़ में संजो लेने के बाद हम वापस ऊपर की तरफ रवाना हुए की इसे अब अगली बार ही देखने आएंगे।
वापस लौट कर जब उसी बोर्ड पर मेरी नज़र गई तो उस पर लिखा पाया की नैना वाटरफॉल्स 7.5kms है वहां से। जिसका मतलब समझ में आया की उस घने जंगल में 7.5kms उतरना है। तो नैना वाटरफॉल्स देखने के ख्याल को हमने अगली बार की सूंची में डाला और मैगनोलिया सनसेट पॉइंट हो लिए। तो ये थी पिछली बार की कहानी।
जब हम वापस रांची आए तो लोगों ने बताया की नेतरहाट नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और हाल - फिलहाल के कुछ सालों में ही यहाँ पर्यटन शुरू हुआ है। इसलिए सलाह ये दी जाती है की नेतरहाट में जहाँ भी जाए कोशिश करें झुण्ड में जाएँ। दूर - वीरान जगहों पे ना ही जाएँ। क्यूंकि जंगल अच्छे घनत्व में है इसलिए किसी भी अनहोनी को मौका ना दें। इसलिए भी लोअर घघरी फाल्स जैसी जगहों पे लोग जाना छोड़ देते हैं। यह सब जान के डर तो लगा। पर कौतुहल और उत्साह के आगे उसकी ना चली।
हमने यात्रा जारी रखी। हम जैसे जैसे उस जंगल में भीतर की तरफ उतरते जा रहे थे, हमे अब आगे कोई नहीं मिल रहा था। हम अब तक बहुत आगे निकल गए थे।मेरे दिल में नन्ही घबराहट ने झाँका। माही और मैं यही बातें कर रहे थे की यार ये तो बस अंदर ही जाए जा रहा है। और कहीं कोई पानी की आवाज़ तक नहीं आयी। आगे-आगे, और आगे, बस आगे जाए जा रहे थे हम। बता दूं की ये रास्ता नए नौसीखिया के लिए बिलकुल नहीं है। मुझे पीछे बैठ कर ही बड़ा सतर्क और संभाल कर बैठना पड़ रहा था।
करते करते हम आ पहुंचे थोड़ी सी समतल जगह पे। क्यूंकि टांगों से लेकर ऊपर धड़ तक हिला देने वाली राइड के बाद थोड़ा अल्प विश्राम तो बनता है। सो हम रुके और कोस ही रहे थे पर्यटन विभाग को की कहीं रास्ते में कोई सिग्न बोर्ड नहीं मिला। कितना अव्यवस्थित है सब! पर जगह बढ़िया थी। जंगल के बीच से एक पानी का तालाब नुमा स्त्रोत बह रहा था, बेहद धीमे। पानी इतना साफ़ के नीचे के कंकर पत्थर साफ़ दिख रहे थे। वहीँ किनारे से पेड़ भी थे। तालाब के बीच में कुछ बड़े पत्थर भी आराम से बैठे थे। पेड़ों की डालियाँ मौज में सर्दी की धुप सेंक रही थी।
माही जितने पानी पी रहे थे, मैंने स्टैंड लगाया और फ्रेम बना कर फोटोज़ खींचने लगी। मुझे जंगली चिड़िया जैसे इधर उधर चहकते देख माही भी मेरे साथ फोटोग्राफी में व्यस्त हो गए। इतने में लोकल को आते देखा तो मैंने झट से पुछा की भैया कहाँ है नैना वाटर फॉल तो उसने बताया की थोड़ी दूर पर है उस तरफ। बताई गई दिशा की तरफ हम फर निकले तो 5 मिनट में एक सुरम्य जगह पर आ पहुंचे।
यहाँ पर अच्छी बड़ी समतल जगह है। यहाँ हमने गरूड़ को पार्क किया क्यूंकि वहां से आगे जाने के लिए एक बेहद पुराना लकड़ी का पुल था जिस पे से गाडी को लेजाना असंभव था। वैसे 1 -2 लोगों को बाइक से जाते देखा जो हमारे बाद वहां आये थे। लोकल थे, खेती के काम से जा रहे होंगे। वे नीचे बह रही वो धीमी सी नदी जिसमे टखने तक पानी था, उसी में चलाकर जा रहे थे। वहां जमीन स्टेप्स में थी इसलिए हमे लगा बेकार का रिस्क लेना हमारे और हमारी गाडी के लिए खतरा बन सकता था। सो हम उस लकड़ी के पुल पे से होकर आगे निकल गए अपनी मिनी सी ट्रैकिंग पे। उस पल को बेहद ध्यान से पार किया मैंने क्यूंकि उसमे जगह जगह लकड़ियां गायब थी!
आगे रास्ते के निशान दिख रहे थे , जिस पर से होते हुए हम 10 मिनट की वॉक कर आखिरकार पहुँच ही गए नैना वाटरफॉल्स पर। वहां पर छतरी वाली बैठने की जगहें बनाई हुई है जैसी हमने सुग्गा बाँध पर देखि थी पिछली बार। हमारे अलावा 3-4 लड़का लड़की और थे। हमने वहां 30 मिनट बिताये। हमारे बाद कुछ लड़के और ए वो नीचे उतरकर नहा रहे थे। जगह अच्छी है नहाने के लिए भी। कोई डर नहीं, रिस्क नहीं है।
ध्यान रखने वाली बात ये है की एकांत बहुत है। तो इसका फयदा अपनी ज़रुरत अनुसार उठायें। और इसी एकांत का ख़ास ख्याल भी रखें ताकि आपके मज़े में कोई खलल ना पड़े। सैलानियों की भारी मात्रा में कमी रहने की वजह से यहाँ सतर्क रहने की बड़ी ज़रुरत है।
एक बार फिर से याद दिला दें की ये रास्ते चार चक्के वाली गाड़ियों के लिए तो बने ही नहीं हैं। और टू व्हीलर्स में भी बाइक से ही संभव है, बशर्ते चलाने वाले अनुभवी हों। सिग्न बोर्ड पूरे रास्ते कहीं नहीं हैं। आपको अंदाज़े से ही चलना है। आपकी किस्मत रही तो लोकल मिल सकते हैं जो रास्ता बता दें। बाकी वैसे सब राम भरोसे तो है ही।
अगर आप हमारी तरह बाइक पर हैं तो आपको जंगल उतरने में 20 मिनट लगेंगे। कुल मिला के नैना जलप्रपात आपको 2 - 3 घण्टे का पड़ेगा। और इसके लिए मुझे लगता है की सुबह नाश्ते के बाद का वक़्त सबसे अच्छा है। रास्ते में कुछ कुरकने यानी खाने पीने या नाश्ते पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। तो अपना चना चबेना साथ लेकर ही आएं। बाकि नक्सल आदि से डरने की कोई ज़रुरत नहीं। हमारा पूरा अनुभव सहज और सुहाना रहा।
हम 12 बजे तक वापस अपने होटल लौट आए। हमने लंच लिया और फिर पाइन फॉरेस्ट के लिए निकल गए। Pine Forest की कहानी अगले ब्लॉग में पढ़िए।
2 Comments
बेहद खूबसूरत जगह है।
ReplyDeleteबिलकुल सही! अगर आप झारखंड की राजधानी रांची में हैं, तो यह जगह निश्चित रूप से एक बार घूमने लायक है।
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