जय रणछोड़ माखन चोर!

गोमती किनारे है श्री रणछोड़रायजी महाराज मंदिर | डाकोर, गुजरात 


इस बार हम निकले वैष्णव तीर्थ डाकोर जी। जहाँ हमे दर्शन होने वाले हैं श्री रणछोड़राय जी महाराज के। जिनका पृथ्वी पर एकमात्र मंदिर है डाकोर, गुजरात में। हमे आनंद से यहाँ पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगा। हम आनंद नवा बस स्टैंड से सुबह 5:30 बजे की बस पकड़ कर डाकोर पहुँच गए। वहां से 10 रुपए की शेयरिंग ऑटो वाले ने हमे मंदिर के ठीक सामने उतार दिया। 


समय के साथ बहुत कुछ बदला है डाकोर में। जो कभी डाणकापुर नाम का एक छोटा-सा गाँव था, वो अब एक धाम बन गया है। चहल-पहल वाले बाज़ार के बीचोंबीच, वहां एक पवित्र झील है – गोमती जी! और उसी के किनारे, बना है मंदिर प्रभु श्री रणछोड़राय जी महाराज का। 

जहाँ पहले एक छोटा-सा मंदिर था, वहाँ अब एक बड़ा, आलीशान मंदिर परिसर खड़ा है। पूरा मंदिर चौकोर आकार में बना है और चारों दिशाओं में चार बड़े गेट हैं। बाहर की दीवारों के आसपास मंदिर की अलग-अलग ऑफिसें और स्टोररूम हैं। गर्भगृह अंदर ऊँचे प्लेटफॉर्म पर बना है – एकदम पुराने जमाने के गुजराती मंदिरों की तर्ज़ पर।

मंदिर का निर्माण श्री गोपालराव जगन्नाथ तांबवेकर ने 1772 ईस्वी में करवाया था। उस समय इसकी लागत थी पूरे एक लाख रुपये – मतलब आज के हिसाब से करोड़ों का खर्चा! मंदिर का डिज़ाइन? एकदम मेडिएवल गुजराती Vibe – मुख्य गेट पे चांदी के दरवाज़े... और उन पर गणेशजी, सूर्यदेव, चंद्रदेव खुद गार्ड ड्यूटी पर हैं – कमल की शिल्पकारी! ऊँचा प्लेटफॉर्म, जिसका साइज़ है 168 फीट बाय 151 फीट, और हर तरफ 12 सीढ़ियाँ। चारों ओर खुला आँगन, आठ गुम्बद और 24 मिनारें – और सबसे ऊँचा गुम्बद? सीधा 90 फीट ऊपर! 

मुख्य गेट झील गोमती की ओर देखता है – अब थोड़ा भीड़भाड़ वाला हो गया है, लेकिन मंदिर का व्यू अब भी क्लासिक है। जैसे ही आप गेट से अंदर आते हैं, ऊपर एक बालकनी है जहाँ ढोल और शहनाई बजाने वाले बैठते हैं – जिसे कहते हैं "नागरखाना"। आरती और दर्शन के वक्त यहाँ की संगीत लहरियाँ पूरे वातावरण में राधा-कृष्ण की फीलिंग भर देती हैं!



आँगन में अंदर जाते ही दिखते हैं दो विशाल दीप-स्तंभ – जिनमें त्योहारों पर हज़ारों दिए जलाए जाते हैं। ये टॉवर बहुमंज़िला होते हैं और गुजरात के मध्यकालीन मंदिरों की खास पहचान हैं।


मुख्य सभा मंडप यानी ‘जगमोहन’ – नाम ही बताता है, जहाँ भगवान अपने भक्तों को मोह लेते हैं! संगमरमर की सीढ़ियों से चढ़कर आप वहाँ पहुँचते हैं। तीन बड़े दरवाज़ों से भक्त अंदर आते हैं और ऊपर चमचमाता गुम्बद – पहले इसमें बूँदी शैली की रासलीला की पेंटिंग थी, अब इसमें शीशे की जड़ाई है – फूल, बेल-बूटे और शाही राजस्थानी बाग़ की झलक! दीवारों पर श्रीकृष्ण की लीलाओ के (जीवन की घटनाओं को) दर्शाने वाली चित्रकारी हैं- माखन चुराना, गोपियों के संग रास, कारागृह में उनका जन्म, सब कुछ! – और उसी के सामने एक छोटा सा सेक्शन महिलाओं के लिए रिज़र्व है।


जैसे हर क्लासिक मंदिर में होता है, यहाँ भी गर्भगृह (इनर सैंक्टम) सीधे मंदिर के मुख्य गेट के सामने है। भगवान रंचोड़जी एक सुंदर छत्र के नीचे विराजमान हैं, संगमरमर के मंच पर, और सोने से मढ़े खंभों के बीच! गर्भगृह के दरवाज़े भी – चाँदी से सजे हुए, बारीक नक्काशी वाले! तीन दरवाज़े हैं – एक आगे से जो मुख्य सभा मंडप की ओर खुलता है, दूसरा दाएँ से जो उस स्नानघर से जुड़ा है जहाँ पुजारी भगवान से मिलने से पहले स्नान करते हैं, और तीसरा बाएँ – जो सीधे भगवान के शयनकक्ष की ओर जाता है।

अब बात करें उस खास शयनकक्ष की – वाह! एकदम राजसी अंदाज़! शीशों की दीवारें, चाँदी-सोने के पलंग, रेशमी चादरें, सुगंधित इत्र और फूल – सब कुछ भगवान के आराम के लिए तैयार! शयनकक्ष से लगा एक खुला हॉल है जहाँ भक्त तरह-तरह के पूजा-पाठ और अनुष्ठान करते हैं।

इसके सिंहासन की बात ही निराली है – यह खूबसूरत लकड़ी की नक्काशी से बना हुआ है, जिसे चाँदी और सोने की परत से सजाया गया है। इसे बड़ौदा के गायकवाड़ शासक ने भेंट किया था।

अब देखते हैं रंचोड़जी का रूप – यहाँ काले कृष्णा विराजमान हैं। प्रभु का यह रूप बेहद मोहक है। काला कितना आकर्षक लग सकता है यह हम कृष्णा को देख कर महसूस कर सकते हैं। लेकिन नज़दीक जाकर देखने की इजाज़त सिर्फ बहुत भाग्यशाली भक्तों को ही मिलती है। और उनमे से थे मैं और माँ। क्यूंकि पुरुषों को वहां महिलाओं के पीछे वाली लाइन में से ही दर्शन करे मिलता है। वे महिलाओं के साथ पास से कृष्णा दर्शन नहीं कर सकते। 

और जैसे बद्रीनाथजी और तिरुपति बालाजी में होता है, वैसे ही डाकोर में भी – देवी लक्ष्मीजी का मंदिर मुख्य मंदिर से थोड़ी दूरी पर, एक शांत रिहायशी इलाके में है। कहते हैं हर शुक्रवार भगवान रंचोड़जी, अपनी लक्ष्मीजी से मिलने खुद वहाँ जाते हैं – और पूरा डाकोर एक सुरमयी जुलूस में झूम उठता है!


अगर आपको कभी ऐसा लगे कि लाइफ में कुछ मिसिंग है, तो भगवान कृष्ण के पाँच धामों की यात्रा पर निकल पड़िए! हाँ जी, ये हैं पंच द्वारका – पश्चिमी भारत में स्थित वो पाँच पवित्र जगहें जो सीधे भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हैं। अब आप सोच रहे होंगे, पंच द्वारका मतलब? अरे भई, 'द्वारका' का मतलब ही होता है 'द्वार' और जब बात हो भगवान कृष्ण की, तो ये साधारण द्वार नहीं बल्कि मोक्ष द्वार (स्वर्ग का रास्ता) और स्वर्ग द्वार (स्वर्ग जाने की एंट्री) हैं!

सबसे पहले आती है द्वारका – चार धामों में से एक और श्रीकृष्ण की कर्मभूमि। गुजरात के समंदर किनारे बसी ये नगरी आज भी वैसा ही एहसास देती है, जैसे मानो श्रीकृष्ण अभी भी यहाँ किसी गली-मोहल्ले में घूम रहे हों! यह स्थान मोक्ष की प्राप्ति का द्वार माना जाता है। और यहाँ का मंदिर? उफ्फ, उसकी भव्यता देख कर तो दिल ही खुश हो जाता है!

फिर आते हैं श्रीनाथजी – राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित, यहाँ कृष्ण कन्हैया गोवर्धन पर्वत उठाने वाले अवतार में विराजमान हैं। यहाँ के प्रसाद का स्वाद ऐसा कि खाने के बाद बोले बिना नहीं रहेंगे – "वाह गोवर्धन धारी!"

इसके बाद कांकरोली द्वारका, जो कि राजस्थान में ही राजसमंद जिले में बसी है। यहाँ भगवान कृष्ण को दिव्य सफेद पत्थर की मूर्ति में पूजा जाता है, और ये स्थान वैष्णव भक्तों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं।

अब बारी है बेत द्वारका की! ये जगह द्वारका के पास एक टापू पर बसी है और मान्यता है कि यही वो स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण अपने सखा सुदामा से मिले थे। यानी दोस्ती का पक्का ठिकाना! इस जगह पर जाने के लिए बोट से सफर करना पड़ता है, जो अपने आप में एक एडवेंचर है!

आखिर में दाकोर द्वारका की बात करें, तो यह गुजरात में स्थित है और यहाँ भगवान कृष्ण रंचोड़जी के रूप में पूजे जाते हैं। अब सोच रहे होंगे, ये 'रंचोड़' कौन? तो भैया, ये तो वही श्रीकृष्ण हैं, जिन्होंने रण (युद्ध) छोड़ दिया था, ताकि युद्ध टाला जा सके। उनकी ये लीला अपने आप में अनोखी है और यहाँ के दर्शन के बाद मन इतना शांति से भर जाता है कि क्या कहें!

तो हुआ न पंच द्वारका यात्रा एकदम अलौकिक? अगर आपको भगवान कृष्ण से कोई खास अरदास करनी हो, या फिर बस उनकी कहानियों और दिव्यता को महसूस करना हो, तो यह यात्रा आपके लिए परफेक्ट है! तो फिर तैयार हो जाइए और निकल पड़िए इस कृष्णमय सफर पर!

गोमती के तट पर 







                                       



अगर आप कभी डाकोर की यात्रा करें, तो इस मंदिर में जरूर जाएं और इस जगह की आध्यात्मिकता और भव्यता का आनंद लें। कौन जाने, भगवान रंछोड़जी आपको भी कोई सपना दिखा दें! 





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